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उत्तमबाग 0 १५ दिखाई देंगे। उन्हें ही दानवीर की उपाधियाँ दी जाती हैं। किसी आहार, औषधि या ज्ञान देने वाले को कभी 'दानवीर' बनाया गया हो तो बताएँ ? एक भी ज्ञानी पंडित या वैद्य समाज में 'दानवीर' की उपाधि से विभूषित दिखाई नहीं देता। जितने दानवीर होंगे वे सेठों में ही मिलेंगे । वणिक वर्ग इससे आगे सोच भी क्या सकता है? इसने एक लाख दिए, उसने पांच लाख दिए - ऐसी ही चर्चा सर्वत्र होती देखी जाती है।
पर मैं सोचता हूँ चार दानों में तो पैसादान, रुपयादान नाम का कोई दान है नहीं; उनमें तो आहार, औषधि, ज्ञान और अभय दान हैं; यह पैसादान कहाँ से आगया ?
दान निर्लोभियों की क्रिया थी, जिसे यश और पैसे के लोभियों ने विकृत कर दिया है।
'हमारी संस्था को पैसा दो तो चारों दानों का लाभ मिलेगा', ऐसी बातें करते प्रचारक आज सर्वत्र देखे जा सकते हैं। अपनी बात को स्पष्ट करते हुए वे कहेंगे - "छात्रावास में लड़के रहते हैं, वे वहीं भोजन करते हैं, अतः पाहारदान हो गया। उन्हें कानून या डॉक्टरी या और भी इसीप्रकार की कोई लौकिक शिक्षा देते हैं, प्रतः ज्ञानदान हो गया। वे बीमार हो जाते हैं तो उनका अस्पताल में इलाज कराते हैं, यह औषधिदान और अखाड़े में व्यायाम करते हैं, यह अभयदान हो गया।" ____ मैं पूछता हूँ क्या अपात्रों को दिया गया भोजन आहारदान है ? कहा भी है :
मिथ्यात्वग्रस्तचित्तेसु चारित्राभासभागिषु ।
दोषायव भवेद्दानं पयःपानमिवाहिषु ।। चारित्राभास को धारण करने वाले मिथ्यादृष्टियों को दान देना सर्प को दूध पिलाने के समान केवल अशुभ के लिए ही होता है ।
शास्त्रों में तीन प्रकार के पात्र कहे हैं, वे सब चौथे गुणस्थान से ऊपर वाले ही होते हैं।
तथा लौकिकशिक्षा ज्ञान है या मिथ्याज्ञान ? इसीप्रकार अभक्ष्य पौषधियों का देना ही औषधिदान है क्या? जिस अभक्ष्य औषधि के सेवन में पाप माना गया है उसे देने में दान-पुण्य या त्यागधर्म कैसे होगा?