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________________ १२४ 0 धर्म के बालमण पहली पंक्ति पढ़ते ही ऐसा लगता है कि कवि बात तो त्यागधर्म की कर रहा है और भेद दान के गिना दिए हैं। पर ऐसा नहीं कि कवि के ध्यान में यह बात न हो। क्योंकि अगली पंक्ति में ही सब कुछ स्पष्ट हो जाता है कि कवि वीतराग भावरूप त्यागधर्म को निश्चयदान या निश्चयत्याग एवं पाहारादि के देने को व्यवहारदान या व्यवहारत्याग शब्द से अभिहित कर रहा है। 'धनि साधु शास्त्र अभय दिवया, त्याग राग-विरोध को। पूजन की इस पंक्ति में शास्त्र और अभय के साथ 'दिवैया' शब्द का प्रयोग एवं राग-विरोध के साथ 'त्याग' शब्द का प्रयोग यह बताता है कि शास्त्र और अभय का दान होता है और राग-द्वेष का त्याग होता है । तथा 'धनि साधु' कह कर यह स्पष्ट कर दिया है कि ये साधु के धर्म हैं । आहार पोर औषधि को जानबूझकर छोड़ दिया गया है, क्योंकि वे साधु द्वाग देना संभव नहीं हैं । इसीप्रकार के प्रयोग अन्यत्र भी देखे जा सकते हैं। अतः शास्त्रों के अर्थ समझने में बहुत सावधानी रखना जरूरी है, अन्यथा अर्थ का अनर्थ हो सकता है। ___ एक बात और भी ध्यान देने योग्य है कि यदि आहारादि देने को ही त्यागधर्म मानेंगे तो फिर एक समस्या और खड़ी हो जावेगी। वह यह कि यहां जो उत्तमक्षमादि धर्मों का वर्णन चल रहा है, वह मुख्यतः मुनियों की अपेक्षा किया गया है, क्योंकि तत्त्वार्थसूत्र में दशधर्म की चर्चा गुप्ति, समिति, अनुप्रेक्षा, परिषहजय और चारित्र के साथ की गई है। ये सब मुनिधर्म के ही रूप हैं। यदि पाहारादि देने का नाम त्यागधर्म है तो फिर मुनिराज तो आहार लेते हैं, देते नहीं; देते तो श्रावक हैं । अतः फिर त्यागधर्म मुनिराजों की अपेक्षा श्रावकों के विशेष मानना होगा जो कि संभव नहीं है । अतः वस्तुतः तो राग-द्वेषादि विकारों के त्याग का ही नाम उत्तमत्यागधर्म है। मुनियों के अनर्गल आहारादि के त्यागरूप त्यागधर्म तो हो सकता है, आहारादि के देने रूप नहीं। हम त्याग का तो सही स्वरूप समझते ही नहीं, दान का भी सही स्वरूप नहीं समझते। इस प्रर्थप्रधान युग में पैसा ही सब कुछ हो गया है। जब भी दान की बात मावेगी, दानवीरों की चर्चा होगी, तो पैसे वालों की पोर ही देखा जावेगा। प्राज के दानवीर सेठों में ही
SR No.010808
Book TitleDharm ke Dash Lakshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1983
Total Pages193
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size13 MB
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