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१०४ 0 धर्म के पसलमान
अनशन से अवमौदर्य, अवमोदर्य से वृत्तिपरिसंख्यान, वृत्तिपरिसंख्यान से रसपरित्याग अधिक महत्त्वपूर्ण है। इस बात को स्पष्ट करने के लिए इनका सामान्य स्वरूप जानना आवश्यक है।
__ अनशन में भोजन का पूर्णतः त्याग होता है, पर अवमौदर्य में एक बार भोजन किया जाता है; इसकारण इसे एकासन भी कहते हैं। यद्यपि इसमें एक बार भोजन किया जाता है, तथापि भर पेट वहीं; इसकारण इसे ऊनोदर भी कहते हैं। किन्तु प्राज यह ऊनोदर न रहकर दूनोदर हो गया है। क्योंकि लोग एकासन में एक समय का नहीं, दोनों समय का गरिष्ठ भोजन कर लेते हैं।
भोजन को जाते समय अनेक प्रकार की अटपटी प्रतिज्ञाएं ले लेना, उनकी प्रत्ति पर ही भोजन करना; अन्यथा उपवास करना वत्तिपरिसंख्यान है। षटरसों में कोई एक-दो या छहों ही रसों का त्याग करना, नीरस भोजन लेना रमपरित्याग है।
उपर्युक्त चारों ही तप भोजन या भोजन-त्याग से सम्बन्धित हैं । इनमें इच्छाओं का निरोध एवं शारीरिक आवश्यकताओं के बीच कितना संतुलित नियमन है - यह दृष्टव्य है ।
इनमें एक वैज्ञानिक क्रमिक विकास है। यदि चल सके तो भोजन करो ही नहीं (अनशन); न चले तो एक बार दिन में शांति से अल्पाहार लो (अवमौदर्य); वह भी अनेक नियमों के बीच बँध कर, अनर्गल नहीं (वृत्तिपरिसंख्यान); और जहाँ तक बन सके नीरस हो क्योंकि सरस आहार गद्धता बढ़ाता है, पर शारीरिक आवश्यकता की पूत्ति करने वाला होना चाहिए, प्रतः सभी रसों का सदा त्याग नहीं किन्तु बदल-बदल कर विभिन्न रसों का विभिन्न समयों पर त्याग हो, जिससे शरीर की प्रावश्यकता-पूत्ति भी होती रहे और जिह्वा की लोलुपता पर भी प्रतिबन्ध रहे (रसपरित्याग)। ____ इससे स्पष्ट है कि तप शरीर के सुखाने का नाम नहीं, इच्छामों के निरोध का नाम है।
प्रब विचारणीय प्रश्न यह है कि अनशन से ऊनोदर अधिक महत्त्वपूर्ण क्यों है ? जबकि अनशन में भोजन किया ही नहीं जाता और ऊनोदर में दिन में एक बार भूख से कम खाया जाता है।
अन्य कार्यों में उलझे रहकर भोजन के पास फटकना ही नहीं की अपेक्षा निर्विघ्न भोजन की प्राप्ति हो जाने पर उसका स्वाद चख लेने