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आचा०
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अथवा पूर्वे कला त्रण दोषथी रहित छे, त्यांसुधी हे पंडित शिष्य द्रव्य क्षेत्र काळ भावना भेदथी मिन्न अवसरने अ प्रमाणे तुं । जाण बोध पाम, ते बतावे छे.
द्रव्य क्षण ते तुं जंगमपणुं पाम्यो छे. पांच इंद्रियो छे. उत्तम कुळमां जन्म्यो छे. रुप वळ आरोग्य अने आयुष्य सारुं पाम्यो छे आ प्रमाणे उत्तम मनुष्य भव पामीने संसार समुद्रथी पार उतारवा समर्थ चारित्रनी प्राप्तिने योग्य तने अवसर मल्यो छे अने अनादि संसारमां भमता जीवने आ अवसर मलवो दुर्लभ छे. कारणके चारित्र मनुष्य जन्ममां छे. देव नारकीना भवमां सम्यक्त्व तथा ज्ञाना वोध रुप सामायिक छे. अने तिर्यचमां कोकनेज देशविरति (श्रावकनां व्रत . ) होय छे.
क्षेत्र क्षण ते जे क्षेत्रमां चारित्र मले ते सर्व विरति अधोलोकनागाममां अथवा तिर्यच क्षेत्रमांज छे ते पण चे समुद्रमां छे. तेमांपण “१५" कर्म भूमिमां छे. तेमां पण भरतक्षेत्रती अपेक्षाए “२५॥ " देशमां चारित्रधर्म प्राप्त थाय छे. आ प्रमाणे क्षेत्ररूप अवसर दुर्लभ जाणवो बीजा क्षेत्रोमा पहेलां बेज सामायिक छे. बीजा घणा द्वीपो अने समुद्रो छे. तेमां सम्यक्त्व अने श्रुत सामायिक छे. तथा कोइकने देशविरतिनो संभव थाय छे.)
काळक्षण
काळरूप अवसर आ अवसर्पिणीमां त्रण आरा जे सुखम, दुखम, दुखम सुखम. तथा दुखम नामना त्रण आरामां धर्म प्राप्ति छे. तथा उत्सर्पिणीमां त्रीजा चोथा आरामां सर्व विरति सामायिकनी प्राप्ति छे. आ नवो धर्म पामता जीवआश्रयी कां पण पूर्वे धर्म पामेला तो तिर्यक् अथवा उद्ध तथा अधोलोकमां तथा बधा आरामां जाणवा. भावक्षण
प्रकारे छे. कर्म भावक्षणनो कर्म भावक्षण कर्म भावक्षण ते कर्मनुं उपशम थवं. क्षय उपशम थवं अथवा सर्वथा क्षय थवं
सूत्रम्
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