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आचा०
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छे. (११)
ऊपनीत अपनीत' वचन कंइक प्रशंसा योग्य गुण 'वतावी निंदा आत्मकगुण बतावे जेमके आ स्त्री सुंदर छे, पण कुलटा अपनीत उपनीत वचन ते प्रथमथी उलढुं छे, जेमके आ स्त्री कुरुपा छे पण शीलत्रत पाळनारी सती छे. (१२) अतीत वचन कृतवान् क. (१३) वर्त्तमान वचन करे छे, (१४) अनागत वचन 'करशे' (१५) प्रत्यक्ष वचन आ देवदत्त छे. (१६) परोक्षवचन ते देवदत्त छे, आ प्रमाणे सोळ वचनो छे, आ सोळ वचनोमां साधुने जरूर पडे, त्यारे एक वचननी विविक्षामां एक वचन बोले, ते परोक्ष वचन सुधीमां ज्यां जनुं योग्य होय त्यां तेनुं बोले, तथा स्त्री विगेरे देखे छते आ स्त्रीज छे, अथवा पुरुष अथवा नपुंसक छे, जेधुं होय ते बोले, आ प्रमाणे विचारी निश्चय करीने सत्य बोलनारो समितिवढे अथवा समपणे संयत भाषा बोले, तथा पूर्वे कलां अथवा हवे पछी कदेवाता दोषोनां स्थान छोडीने भाषा बोले, ते भिक्षु चार प्रकारनी भाषाओ जाणे; ते आ प्रमाणे
(१) सत्यभाषाजात ते यथार्थ वचन अवितथ (खरेख) बोलवु गाय होय तो गाय अश्व होय तो अश्व कहेवो. (२) एथी विपरीत ते मृषा ( जूठ) बोलं - एटले गायने अश्व कहेवो, अश्वने गाय कहेवी.
(३) सत्यमृषा-जेमां थोडुं सत्य थोर्ड असत्य. जेमके - देवदत्त घोडा उपर बेसीने जतो होय तो उंट उपर : बेसीने देवदत्त जाय छे एम कहे.
(४) बोलायेली भाषामां सत्य, जुठ के मिश्रपणुं न होय, ते आमंत्रण आज्ञापन विगेरेमां सत्य जुठ नथी ते असत्यामृपा चोथी भाषा छे, आधुं सुधर्मास्वामीए पोतानी बुद्धिथी नथी कह्युं तेथी कहे छे, के जे पूर्वे तीर्थंकर 'थाय, वर्तमानमां छे अने भविष्यमा थशे ते वधा तीर्थंकरोंए कं छे, हमणां कहे छे अने कहेशे, के आ वर्षाए भाषाद्रव्य अचित्त छे, वर्ण गंध रस फरस
सूत्रमू
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