________________
६॥९८७॥
छे, तथा त्यां आत्मानी विराधनामां संयमनी विराधना पण थाय छे, ते वतावे छे, ते म्लेच्छ विगेरे अनार्यों आ प्रमाणे बोले छे, 18 आचा०६" आ चोर छे ! आ शत्रुओं चर तेना गामथी आवेलो दूत छे ! एम कहीने वचनथी तिरस्कार करे, दंडनी ताडना करे, अने छेबटे है। सूत्रम्
* जीव पण ले, तथा वस्रो विगेरे पण खंचवी ले, पछी साधुने काढी मुके, माटे साधुओने आ शीखामण छे, के तेमणे तेवा मार्गे | ॥९८७॥
जवु नहि, पण तेवा मार्गने छोडीने संयत सारे मार्गे विहार करी ने बीजे गाम जाय.
से भिक्खू० दुइज्जमाणे अंतरा से अरायाणि वा गणरायाणि वा जुवरायाणि वा दोरजाणि वा वेरज्जाणि वा विरुद्धरज्जाणि वा सइ लाढे विहाराए संथ० जण नो विहारवडियाए० केवली व्या आयाणमेयं, तेणं वाला तं चेव जाव गमणाए तओ सं० गा० दृ०॥ (मू० ११६)
ते भिक्षुने विहार करता एम मालुम पडे के ते मार्ग राजा मरीगयो छे, सामंतोए राज्य ते वर्डची लीधु , अथवा युवराजने * गादी मळी नथी, वे राज्य धयां होय, वैर वध्यां होय, विरुद्ध (शत्रु) गजानुं जोर होय, तो तेवा लडाइ तोफाननां उपद्रववाळा
मार्गे बीजो सारो देश अथवा गामो विचरवानां होय तो तेवा मार्गे विहार न करवो, केवळीप्रभु तेमां कर्मादान बतावे छे, त्यां। ४ जतां ते विरुद्ध पक्षना माणसो ते साधुने चोर के जासुस मानीने पूर्वना मूत्रमा कह्या मुजब पीडा पमाडशे, उपद्रव करशे अथवा | है जीवथी पण हणशे, कपडां खुचवी बुरा हाले काढी मुकशे, माटे तेवा मार्गे न जवू,
से भिक्खू वा गा. दुइज्जमाणे अंतरा से विह सिया, से जं पूण विहं जाणिज्जा एगाहेण वा दुआहेण वा तिआहेण वा चउआहेण वा पंचाहेण वा पाउणिज्ज वा नो पाउणिज्ज वा तहप्पगार विह अणेगाहगमणिज्ज सइ लाढे जाव गमणाए,