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न पड्यो होय, तो तेवा सीधा मार्गे न जवू, पर्ण जीव-जंतु विनोना तथा कादव माटी पाणी विनाना मार्गे चक्रावो खाइने ज्यांथी लोको जतां होय तेवा रस्ते साधुए जवु, पण वीजो रस्तो न होय, अथवा जवानी शक्ति न होय, तो ते मार्गे यतनाथी चालवू. वळी
से भिक्खू वा० गामा० दुइज्जमाणे अंतरा से विरूबरूवाणि पचंतिगाणि दसुगाययाणि मिलक्खूणि अणायरियाणि दुसनप्पाणि दुप्पन्नवणिज्जाणि अकालालपडिवोहीणि अकालपरि भोईणि सह लाढे विहाराए संथरमाणेहिं जाणवएहिं नो विहारवडियाए पवज्जिज्जा गमणाए, केवलो व्या आयाणमेय, तेणं बाला अयं तेणे अयं उवचरए अय ततो आगएतिकहूं तं भिक्खु अकोसिज्ज वा जाव उद्दविज वा वत्यं प० कं० पाय० अच्छिदिज्ज वा भिंदिज्ज अवहरिज्ज वाप रिहविज्ज वा, अह भिक्खूणं पु० ज तहप्पगाराई विरू० पञ्चंतियाणि दस्तुगा. जाव विहारवत्तियाए नो पवज्जिज्ज वा गमणाए तओ संजया गा० दू० ।। (मू० ११५)
ते भिक्षने बीजे गाम जतां एम मालुम पडे, के आ मार्ग जतां वचमां विरुप रुपवाळा महादुष्ट एवा चोरोनां स्थान छे. तथा बर्वर शबर पुलिंद विगेरे म्लेच्छथी प्रधान एवा अनार्य लोको जे गंगा सिंधुनी वचमाना २५॥ आर्य देश छोडीने बोजा
देशोमां रहेला छे, तेओ दुःखेथी आर्योनी संज्ञा समजे छे, तथा महा कष्टी आर्य धर्मने समजे अने अनार्य संकल्पने छोडे, तथा 1 अकाळमां पण भटकनारा छे. कारणके अडयोर.त्रे पण शिकार विगेरे माटे जाय छे, तथा अकाले (वखत विना) भोजन करनारा # छे, माटे ज्यां सुधी बीजा देशोना सारां गामो विचरवाना होय त्यां सुधी तेवा अनार्य देशोना क्षेत्रमा हुँ जइश, एवी प्रतिज्ञा साधुए
न करवी, (अर्थात् त्यां जq नहि ) त्यां जवाथी केवलीप्रभु तेमां दोष बतावे छे, कारण के त्यो जवाथी संयमनी विराधना थाय,