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आचा०
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_तेमां उत्सेध ( लोकमां वपरातुं माप आंगळीनुं) अंगुलना असंख्येय भाग जेटला शुद्ध आत्म प्रदेशना प्रतिनियत चक्षु विगेरे इंद्रियोना संस्थान वडे जे वृत्ति अंदर रहेली छे ते निवृत्ति जाणवी .
ते आत्मा प्रदेशोमांच इंद्रियना व्यपदेशने भजनार जे प्रतिनियत संस्थानवालो निर्माण नामना पुद्गल विपाकवाली ( कर्मप्रकृतिवडे) वर्द्धकि ( सुतार माफक ) विगेरे विशेष रूपवालो (इंद्रिय विभाग) अने अंगोपांग नामना कर्मवडे बनावेल जे छे ते बहारनी निर्वृत्ति जाणवी.
(आ उपर जे वर्णन कर्तुं ते शरीरनी अंदर अने बहार ज्यां जे इंद्रिय रहेली छे तेनुं बने प्रकारनुं वर्णन बताव्युं छे, बहारनी | इंद्रियो दरेकनी देखाय छे पण अंदरनी तो आत्मज्ञानी जाणी शके छे) उपरनी वतावेली निवृत्ति वे प्रकारनी कही तेने जेना वढे उपकार कराय छे ते उपकरण छे अने ते इंद्रियोना कार्यमां समर्थ छे. वली निर्वृत्ति होय अने हणाइ नहोय तो पण मथुर ( जेनी | दाळ थाय छे) तेना आकार वाली निर्वृत्तिमां तेने जो उपघात थाय तो आंख जोइ शकती नथी (आंखनो बहारनो आकार मथुरनी दाळ जेवो छे, जोते नाश पामे तो अंदर आत्मानी शक्ति छे छतां ते जोड़ शकतो नथी माटे बहारना आकारने उपकरण कधुं छे. पण निर्वृत्ति माफक वे प्रकारे छे तेमां आंखनी अंदरनुं काळं धोळं मंडळ छे अने बहारनुं पण पांदडांना आकारे वे पापण विगेरे छे, (ते सौने जाणीतुं छे.)
आ प्रमाणे बीजी इंद्रियोमां पण जाणी लेवु.
भावइंद्रिय पण लब्धि अने उपयोग एम वे भेदे छे. तेमां लब्धि छे, ते ज्ञानदर्शन आवरणीय कर्मना क्षय उपशमरुप जेना सं
सूत्रम्
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