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आचा०
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प० आर्धसंति वा पसंति वा उव्वलंत वा उच्चर्हिति वा नो पन्नस्स० ॥ ( सु० ९५ )
भिक्षु मजा के आ घरमां गृहस्थो के घरनी माणसोः परस्पर स्नान करे छे, अथवा शरीरे सुगंधी पदार्थो तेल चूर्ण विगेरे एकवार घसे छे, अथवा वारंवार घसे हे, तेवा मकानमां बुद्धिमान् साधुएं न उतर.
सें भिक्खू० से जं पुण उवस्सयं जाणिज्जा, इह खलु गाहावती वा जात्र कम्मकरी वा अणमण्णस्स गायं सिओदग० सिणो० उच्छो ? होयंति सिंचति सिणावंति वा नो पन्नस्स जात्र नो ठाणं० ॥ ( सू० ९६ )
तें भिक्षु एम मालूम पडे के आ उपाश्रयमां गृहस्थना घरनां माणसो ठंडा पाणीथी के उना पाणीथी परस्पर छांटे छे, धुए छे, सिंचे छे, स्नान करावे छे, तेवा स्थानमां बुद्धिमान् साधुने उतरवुं न कल्पे.
से भिक्खू वा० से जं० इह खलु गाहावई वा जाव कम्मकरीओ वा निगिणां ठिया निगिणा उल्लीणा मेहुणधम्मं विन्नर्विति रहस्सियं वा मंत मंतंति नो पन्नस्स जाव नो ठाणं वा ३. चेइज्जा ॥ ( सू० ९७
जे घरमा स्त्रीओ कपडा काढीने बेमर्याद पणे बेसे, अथवा संसारसंग संबंधी कइ पण छानी वात एक वीजाने रात्रि संबंधी कहे अथवा कांइपण खानगी वात अकार्य संबंधी चिंतवे, तेवा स्थानमां साधुएं निवास न करवो, कारण के त्यां रहेवाथी स्वाध्यायमां विघ्न थाय, अने चित्तमां कुवासना विगेरेना दोषो थाय छे. बळी
से भिक्खु वा शे जं पुण उ० आइन्नसंलिक्खं नो पन्नस्स० ॥ ( सू० ९८ )
, ते भिक्षु एम जाणे के आ घरमां उत्तम शृंगाररसनां चित्रो छे, त्यां मझसाधुएं न उतरखुं, कारण के त्यां उतरवायी भींतोनां
सूत्रमू
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