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से भिक्खू वा० से जं. ससागारियं सागनियं सउदयं नो पनस्स निक्खमणपवेसाए जावऽणुचिंताए, तहप्पगारे उवस्सए.नो ठा०. आचा
ते भिक्षु एवू जाणे के आउपाश्रयमा गृहस्थ रहे छे. अथवा अग्नि बळे छे, अथवा पाणी (सचित) रहे छे, त्यां आगळ
प्रज्ञसाधुए काउसग्ग करवा के ध्यान करवा के भणवा रहे नहि. (त्यां निवास न करवो) ॥९७१॥
५ से भिक्खू वा० से जं० गाहावइकलस्स मज्झमज्झेणं गंतु पंथए पडिबद्धं वा नो पन्नस्स जाव चिंत्ताए तह उ० नो ठा०॥(सू०९२ ।
जे उपाश्रयमा उतर्या होय त्यां गृहस्थना घर मध्येनो मुख्य रस्तो होय त्यां बहु अपायनो संभव होवाथी तेवी जग्याए न रहेQ से भिक्खू वा० से जं०, इह खलु गाहावई वा० कम्मकरीओ वा अत्रमन्नं अकोसंति वा जाव उद्दवंति वा नो पन्नस्स०,
सेवं नच्चा तहप्पगारे उ० नो ठा०॥ (मू०.९३) 8 ते बुद्धिमान साधु एम जाणे, के आ जग्यामां गृहस्थ अथव नेना घरमां काइपण नोकर विगेरे परस्पर लडे छे. एक बीजाने * उपद्रव करे छे, तेवू जाणीने ते घरमां साधुए निवास न करवो, कारण के त्यां रहेतां गणवामां के समाधिमां विघ्न थाय छे.
से भिक्खू वा० से ज. पुण० इह खलु गाहावई वा कम्मकरीओ वा अन्नमन्नस्स गायं तिल्लेण वा नव० घ० वसाए वा अभंगेति वा मक्खेंति वा नो पण्णस्स जाव तहप्प. उव० नो ठा. (मू० ९४)
ते साधु एम जाणे के आ घरमा गृहस्थ अथवा नोकरडी विगेरे कोइपण परस्पर एक बीजाना शरीरने तेस, माखण, धी के चरवीथी चोळे छे, अथवा कल्क विगेरेयी उवर्तन करे छे, त्यां प्रज्ञसाधुने निवास करवो न कल्पे.
से भिक्खू वा० से जं पुण०-इह खलु गाहावई वा नाव कम्मकरीओ अन्नमन्नस्स गायं सिणाणेण वा क० लु० चु०
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