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॥९४८॥
| तेने उद्देशीने जीवोनो आरंभ करीने बनावेलो छे, अथवा ते साधुने उद्देशीने वेचातो लीधो छे, अथवा अन्य पासेथी उछीको लीधो 8 आचा०
छे, अथवा नोकर विगेरे पासेथी वळ-जवरीयी लीधो छे, वधानो सामटो होय, तेमां वधानी रजा लीधा विना लीधो होय अथ
वा तैयार थयेलुं मकान के तंबु विगेरे वीजी जग्याथी लावेल होय, आवा स्थानने श्रावक साधुनी पासे आवीने आपे, तो तेवा । ॥९४८॥
आप, ता तवा | उपाश्रयमा ज्यां सुधी चीजो पुरुष तेवा मकानने न वापरे, त्यां सुधी पोते तेमां काउसम्ग विगेरे के रहेवास न करे, आ एक साधु
आश्रयी का. ते प्रमाणे घणा साधु एक साध्वी के घणी साध्वीने उद्देशीने ते आश्रयी पण समजवू, वो त्यारपछी श्रमण वणीहै मगाश्रयी मृत्रमा पण पिंडेपणा मूत्र प्रमाणे जाणवू, एरले ते मूत्रमा समजवू के प्रथम पोते न उतरवू पण साधु सिवाय बीजो
कोइ गृहस्थ उतरे, त्यारपछी पोते उतरे तथा साधु जाणे के आ उपाश्रय साधुने माटे गृहस्थे बांसनी कांवी (खापटो) विगेरेथी। वांधेल छे, दर्भ विगेरेथी छायेल छे, छाण विगेरेथी लीप्यो छे, खडो विगेरे खडबचड पदार्थथी घस्यो छे, अने तेने कळि विगेरेना ल लेपथी कोमळ वनाव्यो छे, तथा जमीन साफ करी संस्कार्यों छे, दुर्गधी दूर करवा धुप विगेरेथी धुपाव्यो छे, आq जो साधु
| माटे करेलुं होय तो ज्यां सुधी कोइ गृहस्थ न वापरे, त्यां सुधी ते मकानमा पोते काउ सग्ग विगेरे न करे, पण ज्यारे वोजो वापरे, 18| तेवू जाणे त्यार पछी ते मकान पडिलेही प्रमार्जीने काउसग विगेरे करे.
से भिक्खू वा० से जं० पुण उवस्सयं जा० अस्संजए भिक्खुपडियाए खुडियाओ दुवारियाओ महल्लियाओ कुज्जा, जहा पिंढेसणाए जाव संथारगं संथारिज्जा बहिया वा निनक्खु तहप्पगारे उबस्सए अपु० नो टाणं ३ अह पुणेवं० पुरिसंतरकडे आसेविए पढिलेहित्ता २ तओ संजयामेव आव चेहज्जा ॥ से भिक्खू वा० से जं. अस्संजए भिक्खुपडियाए उदग्गप्प
SCASSESSESSESSROSTEL