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जायं.? से सेवं वयतस्स परो वइज्जा-आउस्सं नो समाणा! तुमं चेवेयं पाणगजायं पडिग्गहेण वा उस्सिचिया णं आचा० उयत्तियां णं गिण्हाहि, तहप्पगारं पाणगजायं सयं वा गिहिज्जा परो वा से दिज्जा, फासुयं लाभे संते पडिगाहिज्जा ॥
सूत्रम् (सू०४१) ॥९१५॥
ते साधु गृहस्थना घरमां पाणी माटे गयेल होय. त्यां एवु जाणे के आटोगुंदळवान आ पाणी छे, ते उस्सोइम छे, तथा तलने |8| ॥९१५॥ | धोवानं पाणी छे, ते संसेइम छे, अथवा अरणिका विगेरे धोवानुं पाणी छे, तेमां प्रथमनां वे तो प्रासुक छेज; पण त्रीजा चोथा है नंबरना पाणी मिश्र छे, ते अमुक काळे परणित [ फासु] थोय छे, ते चावल [चोखा] नुं धोवण छे, तेमां त्रण अनादेश छे, 8
परपोटा थता होय, पाणीनां विदुओ वासणने लागेलां शोपाइ गयां होय, अथवा तंदुलरंधाइ गयां होय, पण तेनो खरो आदेश आ3 | छे, के पाणी स्वच्छ, थइ गपुं होय, [परपोटा बेसीने स्वच्छ थयु होय तेज लेवाय ]-अनाम्ल ते पोताना स्वादथी अचलित अव्यु-1 तत्क्रांत अपरिणत अविध्वस्त अप्रासुक मालुम पडे ते साधुए लेवू नहि, अने तेथी विपरित होय तो गृहण करवू, फरी पाणीना न
अधिकारथीज विशेषे कहे छे. 8 ते भिक्षु गृहस्थना घरमा पेठेलो आq पाणी जाणे, के [४] तलनुं धोवण कोइपण प्रकारे मासुक करेलुं पाणी, गृहस्थना | दि घरमा छे, ए प्रमाणे [५-६] तुपथी, जवथी, अचित्त थयुं होय, [७] आचाम्ल [ ओसामण ] [८] आरनाल सोवीर [९] बरोबर
उनुं पाणी शुद्ध विकट अथवा तेवू द्राक्षन धोवण विगेरे अचित्त पाणी जुए, तो गृहस्थ ने कहे, के हे भाइ ! हे वाइ ! जे कंइ आq | अचित्त पाणी होय, ते मने आपो! ते वखते गृहस्थ बोले, के हे साधु ! तमेज आ पाणी पोताना पानरा बढे के काचलीवडे के