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छे, त्यां रस्तामा जतां बहु पतंग विगेरे पाणीओ होय छे, तथा.. बहु वीज, बहु हरित, बहु अवश्याय घणु पाणी बहु उत्तिंग पनक भींजवेली माटी करोळीयानां ज़ाळां होय छे, तथा त्यां जमण जाणीने घणा श्रमण ब्राह्मण अतिथि कृमण वणीमग आव्या, आवशे सूत्रम् अने आवे छे, ते चरक विगेरेथी व्याप्त होय छे, तेथी बुद्धिमान साधुने त्यां जq आवकल्पे नहि, तेम त्यां जनारने गीतवाजीत्रना संभवथी भणबु भणाववं अर्थचिंतयन विगेरे थइ शके नहि, तेथी ते साधुने आवतां जतां घणो काळ लागे, तेथी बहु
LA८९१॥ दोषवाळी संखडिमां ज्यां मांस विगेरे मुख्य छे, तेवा प्रथमना. जमणमां के पाछळना जमणमां तेने उद्देशीने साधुए जवु नहि, हवे अपवाद मार्ग कहे छे..
ते भिक्षु मार्गमा विहार करतां दुर्वळ थाय, मंदवाडमाथी उठ्यो होय, तपचरणथी दुर्बळ थयो होय, अथवा बीजे कंइ आहार मळे तेवू स्थान न होय, अथवा त्यांज वानी चीज मळे तेम होय, तो तेवा जमणमां कारण प्रसंगे जवु पडे तो जे रस्ते सूक्ष्म * जीवो घास वीज के वचमां कांइ न पडधु होय, तो ते रस्ते मांस विगेरेना दोषो दूर करवा समर्थ होय तो कारणे जाय, अने
पोताने खपनी भक्ष्य वस्तु लइ आवे. (जैनोमा दश विकृति विगइ छे. घी, दूध, दही, तेल, गोळ, कडाइ एटले एकल घी, के दूध,
दही, तेल, गोळ अने कडाइमां घी, तेल पुष्कळ नांखीने तळेल होय ते कडाइ विगय कहेवाय, आ पदार्थो जरुर पडे तो लेवाय & छे, पण मांस मदिरा मांखण अने माखी वीगेरेनु मध ए अभक्ष्य छे. कारणके तेमां जीवोनी उत्पत्ति छे. अने ते खानारने इंद्रियो
दमन करवी तथा मुबुद्धि राखवी दुर्लभ छे, माटे जैन साधु के श्रावकने वर्जवा योग्य छे, माटे बने त्यांसुधी तेवा रस्ते पण जवानो ॐ निषेध छे, वखते खराब वस्तुनी दुर्गधी आवे तो पण बुद्धि भ्रष्ट थाय छे.
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ॐ