________________
आचा०
पूर्वे वतावेल फासु जग्यामां जइने त्यां वारंवार आंखे जोइने रजोहरण विगेरेथी पुंजीपुंजीने परठवे. प्रत्युपेक्षण अने प्रमार्जनने । आश्रयी भांगा थाय छे..
द सूत्रम् (१) अप्रत्युपेक्षित अममार्जित, (२) अमत्युपेक्षित प्रमार्जित (३) प्रत्युपेक्षित अप्रमार्जित. तेमां पण देख्या विना प्रमार्जन करतो ॥८६६॥
5 एक स्थानथी वीजा स्थाने जतां त्रस जीवोने विराधे छे. अने देखीने पूज्या विना आवता पृथ्वीकाय विगेरेने विराधे छे, बाकीना ॥८६॥ ५ चार भांगा नीचे मुजब छे.
(४) खराब रीते देखेखें अने पुंजेलं [५] खराव रीते देखेलुं बरोबर पुजेलं (६) सारी रीते देखेलं खराब रीते पुजेल (७) सारी रीते देखेखें, सारी रीते पुंजेल. तेथी आ सातमा भांगामां बतावेली रीतिए स्थंडिल जोइने उत्तम साधु उपयोग राखीनेज है। शुद्ध अशुद्ध पुंजना भागो परिकल्पीने त्यजे [परठवे]
हवे औषधिनी विधि कहे छे. ‘से भिक्खू वा भिक्खूणी वा गाहावइ० जाव पवि? समाणे से जाओ पुण ओसहीओ जाणिजा-कसिणाओ सासियाओ अविदलकडाओ अतिरिच्छच्छिन्नाओ अवुच्छिण्णाओ तरुणियं वा छिवाडिं अणभिकंतभज्जियं पेहाए अफासुयं अणेसणिज्जति मन्नमाणे लाभे संते नो पडिग्गाहिज्जा ॥ से भिक्खू वा० जाव पविढे समाणे से जाओ पुण ओसहीओ जाणिज्जा-अकसिणाओ असासियाओ विदलकडाओ तिरिच्छच्छिन्नाओ वुच्छिन्नाओ तरुणियं वा छिवार्डि अभिकंतं भज्जियं पेहाए फासुयं एसणिजति मन्त्रमाणे लाभे संते पडिग्गाहिज्जा ॥ (मू०२)
GROUGRAHASRHADRs