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॥८६०॥
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तेज प्रमाणे पांचमुं अध्ययन आवंति' नामन छे, नेना चोथा उद्देशामां आ सूत्र छे, "गामाणुगाम दुइज्जमाणस्त दूजाय दुप्परिकंत 13 | इत्यादि" आ सूत्रथी 'इर्या.' समिति संक्षेपथी वर्णवी. तेथी इर्या अध्ययन रच्यु छे. तथा छठा अध्ययनना पांचमा उद्देशामां आ सूत्रम् सूत्र छे, “आ इक्खइ विहयइ किट्टई धम्मकामी" आथी भाषा जात अध्ययन रच्युं छे तेम तुं जाण.॥२८९।।
॥८६०॥ सत्तिक्कगाणि सत्तवि निज्जुदाई महापरिनाओ। सत्थपरिन्ना भावण निज्जूढा उ धुय विमुति ॥ २९॥ 'आयारपकप्पो पुण पञ्चक्खाणस्स तइयवत्थूओ। आयारनामधिज्जा वीसइमा पाहुडच्छेया ॥ २९१ ॥ तथा महापरिज्ञा नामना-सातमा अध्ययनमा सात उद्देशा हता, तेमांथी एकेक लेवाथी सात लीधा छे. तथा शस्त्र परिज्ञामांथी भावना अधिकार लीधो छे, तथा धुतअध्ययनना वीजा चोथा उद्देशामांथी विमुक्ति अध्यपन लीधुं छे. ॥९॥
तथा आचार प्रकल्प ते निशीथसूत्र छे अने ते प्रत्याख्यान पूर्वनी त्रीजी वस्तु छे तेमां २० मुं पाहुइ आचार नामनुं छे &ा तेमांथी लीधेल छे. (आ पांचमी चूडा जुदी पाडी छे.)
ब्रह्मचर्यनां नव' अध्ययनोथी आचार अग्र (चूलिकाओ) रचेल छे. एथी नियुहन [रचवा] ना अधिकारथीज ते शखपरिक्षा अध्ययनथीज ते आचार अग्र (चूला) रची छे, ते वतावे ."
- अन्बोगडो उ भणिओ सत्यपरिन्नाय दंडनिक्खयो। सो पुण विभज्जमाणो तहा तहा होइ नायन्यो । २९२॥
अव्यक्त दंड निक्षेपो हतो ते वताव्यो छे, एटले प्राणीओने पीधारूप जे दंड छे, तेनो निक्षेप (परित्याग ) छे, अर्थात संयम छे, ते शस्त्रपरिज्ञा अध्ययनमा गुप्त रीते को हतो, नेथी ते संयमनेज जुदा जुदा भाग पाडीने आठे अध्यनमा अनेक
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