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आचा०
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योग रोके छे. पछी सूक्ष्मं वचनयोग रोके छे. त्यार पछी सुक्ष्म काय योगने रोकतो अप्रतिपाति नामना शुक्लध्याननात्रीजा | भेदने आरोहे छे अने सूक्ष्म क्रियाने रोकतो विशेषे करीने क्रिया रोकीने अनिवृत्ति नामना शुक्लध्यानना चोथा पायाने आरोहे छे. अने तेमां आरुढ थयेलो अयोगी केवळी भावने पामेलो अन्तर्मुहूर्त जघन्य उत्कृष्टथी रहे छे. तेमां जे जे कर्मनो उदय आवेल नथी ते ते कर्मोने स्थितिना क्षयवडे खपावतो अने वेदाति प्रकृतिने बीजी प्रकृतिमां संक्रमावतो खपावतो छेवटना पहेला समयमां आवे छे. ते वखते देवगति साथेनी कर्म प्रकृतिओ खपावे छे.
देवगति अनुपूर्वी वैक्रिय आहारक शरीर वन्नेनां अंगोपांग अने वन्धन अने सङ्घात तथा बीजी प्रकृतिभ खपावे छे औदारिक तेजस कार्मण ए ऋण शरीर तेनां वन्धन अने सङ्घातन छ सस्थान छ सङ्घयण औदारिक शरीरना अंगोपांग वर्ण गंध रस फरस मनुष्य अनुपूत्रों अगुरु लघु उपघात पराघात उच्छवास प्रशस्त अमशस्त विहायोगति तथा अपर्याप्त प्रत्येक स्थिर अस्थिर शुभ अशुभ सुभग दुर्भग सुस्वर दुःखर अनादेय, अयशकीर्ति निर्माण नीचगोत्र कोइ पण एक वेदनीय कर्म खपावे छे.
अने छल्ला समयमां तो १ मनुष्य गति २ पचेन्द्रिय जाति ३ त्रस ४ बादर ५ पर्याप्त ६ सुभग ७ आदेय ८ मशः कीर्ति ९ तिर्थंकर नाम १० कोइ एक वेदनीय कर्म ११ आयु १२ उच गोत्र ए बार प्रकृतिओ तीर्थङ्कर खपावे छे, अने कोइ आचाने मते अनुपूर्वी सहित तेर प्रकृतिओ खपावे छे, अने तीर्थङ्कर न होय, ते प्रथम बतावेली बार अथवा अग्यार खपावे छे, संपूर्ण कर्म क्षय कर्या पछी तुरतज अस्पर्श गतिए एकांतिक अत्यंतिक अनावाध लक्षणवाळा मुखने अनुभवतो सिद्ध स्थान जे लोकना अग्र भागे छे, त्यां पहोंचे छे.
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सूत्रम्
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