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आचा०
॥ ८१४ ॥
सूत्रम्
खपावे छे.अन्त समयमां ज्ञान आवरण अने अंतराय पंचक तथा दर्शन आवरण चतुष्क खपावीने आवरण रहित ज्ञान दर्शनवाळो केवळी (सर्वज्ञ) बने छे. अने ते फक्त एकर्ज सातावेदनीय कर्मने सयोगी गुणस्थान सुधी बांधे छे. आ गुणस्थाने जघन्यथी केवळी अंतर्मुहूर्त अने उत्कृष्टथी पूर्व कोडीमां थोडं ओछु आयु सुधी होय छे. त्यार पछी आ केवळी भगवानने मालम पढे के अंतर्मुहूर्त आयु बाकी छे. अने वेदनीय कर्म घणुं वधारे छे तो वन्नेनी स्थिति सरखी करवा केवळी समुद्घात अनुक्रमे करे छे. केवळी समुद्घातनुं वर्णन.
॥ ८१४॥
औदारिक कायना योगवाळो आ लोकना अंत सुधी उंचे नीचे पहोंचे त्यां सुधी शरीरना परीणाह (अवगाहनाना ) प्रमाणनो प्रथम समयमा दंड आकार बनावे छे. बीजा समयमां तीछ दिशामां लोकांत पुरवा माटे कपाट ( कमाड) माफक औदारिक कार्मण शरीरना योगमां रहीने बनावे छे. त्रीजा समयमां खुणाओ पुरवा माटे कार्मण शरीर योगमां रहीने मन्थान (मथणी) माफक बनावे छे. अने ते सम श्रेणि पछी श्रेणि लेवाथी लोकनो घणो भाग प्राये पुराय छे. अने चोथा समयमां कार्मण योगवडेज मंथानना वचमां रहेला आंतरा पुरवा माटे निष्कुटवडे पुरे छे तेज प्रमाणे उलटा क्रमे वीजा चार समयमां ते व्यापारने संकेलता ते ते योगवाळो थाय छे. फक्त 'छट्टा' समयमां मंथाननो उपसंहार करतां औदारिक मिश्रयोगी थाय छे. ते प्रमाणे केवळी भगवान समुदूधातने संहरीने पछी फलक विगेरे पोते जे गृहस्थ पासे लीधुं होय ते पाछु सोपीने योगनो निरोध करे छे.
योग निरोध वर्णन:
प्रथम बादर मन योगने रोके छे. पछी वचन योगने अने काय योग जे बादर होय तेने रोके छे पछी एज क्रमे सूक्ष्म मनो