________________
61-56-05
प्रथम स्थितिमा प्रक्षेप करतो आ प्रक्रियावडे सम्यक्त्वना बन्धना अभावथी अंतर क्रियमाण करेल थाय छे. मिथ्योख सम्यक मिआचा०
| थ्यात प्रथम स्थिति दलिकने आवलिकाना परिमाण मात्र सम्यक्त्वनी प्रथम स्थितिमां स्तिबुक सङ्कमवडे सङ्क्रमावे छे. तेमां पण
सम्यक्त्वनी प्रथम स्थिति क्षीण थतां उपशांत दर्शनत्रिकवालो थाय छे. त्यार पछी चारित्रमोहनीयने उपशमावतो पूर्व माफक त्रण 18 करण करे छे. एमां विशेष आ छे.यथा प्रवृत्त करण अप्रमत्त गुणस्थानेज थाय छे. अने बीजु अपूर्वकरण तो आठमुं गुणस्थान छे. ॥८११॥
तेना प्रथम समयेज स्थितिघात, रसघात,गुणश्रेणि,गुणसङ्कम, अपूर्वस्थितिबंध, ए पांचे अधिकार साथे प्रवर्ते छे. तेमां अपूर्वकरणना संख्येय भाग जतां निंद्रा प्रचलाना बंधनो व्यवच्छेद थाय छे. तेमां पण घणां हजार स्थितिनां कंडको गये छते छल्ला समयमां 81 चीजा भवनी नाम प्रकृतिनी त्रीस प्रकृतिना बंधनो व्यवच्छेद करे ते आ प्रमाणे छे.
(१) देवगति (२) अनुपूर्वी (३) पचेंद्रिय जाति, (४) वैक्रिय (५) आहारक शरीर अने ते (६-७) बमेना अंगोपांग, (८) तेजस (९) कार्मण शरीर (१०) समचतुरस्र संस्थान (११ थी १४) वर्ण गंध रस स्पर्श (१५) अगुरुलघु (१६) उपधात है।
(१७) पराघात (१८) उच्छवास (१९) प्रशस्तविहायोगति (२०) त्रस (२१) बादर (२२) पर्याप्त (२३) प्रत्येक (२४) स्थिर ! - 8 (२५) शुभ (२६) सुभग (२७) सुखर (२८) आदेय (२९) निर्माण (३०) तीर्थङ्करनाम तेथी अपूर्व करणना छेल्ला समयमां
हास्य रति भय जुगुप्साना वधनो व्यवच्छेद थाय छे. अने हास्यादि पटकना उदयनो व्यवच्छेद थाय छे. बधा कर्मनो अप्रशस्तनो उपशम निद्धत निकाचना करवानुं व्यवच्छेद थाय छे. (टीकाना काउसमां लख्युं छे के देशना उपशमनो व्यवच्छेद थाय छे) तेथी। ए प्रमाणे असंयत सम्यग्दृष्टि विगेरेथी अपूर्वकरणना अंत सुधी सात कर्मोनो उपशांत मेळवाय छे. त्यार पछी अनिवृत्तिकरण छे.