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सूत्रम्
॥२६९॥
- मोहलीयकर्मनी ७० कोडाकोडी सागरोपम छे. नाम अने गोत्रनी २० कोडाकोडी सागरोपम छे. आयुष्यकर्मनी फक्त ३३ साआचाल गरोपमनी छे, तेमां पूर्वकोडीनो त्रीजो भाग अबाधा काळ छे.
हवे जघन्यथी कहे छे-ज्ञानदर्शननां, आवरण, मोहनीय, अंतराय, ए चार कर्मना जघन्यवन्धनी स्थिति अंतर्मुहर्तनी छे. नाम॥२६९॥
गोत्रनी आठ मुहर्तनी छे वेदनीयकर्मनी १२, अने आयुष्यनी जे सौथी क्षुल्लक (नानो) भव छे-ते निरोगी मनुष्यना श्वासोश्वासना काळना लगभग १७मे भागे छे. (युवान माणसना एक श्वासोश्वासमा निगोदना जीवना १७ भव लगभग थाय छे.) हवे बन्ने उस्कृष्ट जघन्य बन्धने उत्तर प्रकृति आश्रयी कहे छे.
मति श्रुत अवधि मनःपर्याय केवळ आवरण निद्रा पंचक चक्षु दर्शन विगेरे चतुष्क असाता वेदनीय तथा दान अंतराय विगेरे । 8. पांच ओ बधीनी एटले २० उत्तर प्रकृतिनी ३० कोडाकोडी सगरोपम छे. स्त्रीवेद साता वेदनीय मनुष्य गति तथा अनुपूर्वी ए| हैं चार प्रकृतिनी १५ कोडाकोडी सागरोपम छे.
मिथ्यात्व मोहनीयनी ७०नी छे. अने १६ कषायनी ४० कोडाकोडी सागरोपम छे.
(१) नपुंशक वेद (२) अरति (३) शोक (४) भय (५) जुगुप्सा (६) नरक (७) तिर्यच ए बे गति तथा (८) एकेन्द्रिय (९) दू पंचेन्द्रिय जाति (१०) औदारिक (११) वैक्रिय शरीर तथा ते (१२-१३) बन्नेनां अंगोपांग तथा (१४) तैजस (१५) कार्मण (१६) हैहुंडक संस्थान (१७) छेल्लु संहनन (१८) वर्ण, (१९) गध (२०) रस. (२१) स्पर्श. (२२) नरक. (२३) तियेच अनुपुर्वी (२४)
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