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आचा०
सूत्रम
अद्रव्य भूत पापनां कलंकथी अंकित थवाथी एवा उत्तम साधुओ साथे वसतां पण सुधरता नथी. (अर्थात् जगत्मां सारा साधुओ नजरे जोवा छतां पण, ढीला साधु सुधरता नथी) आवा ढीला साधुने जाणीने शुं करवू ? ते कहे छे:-हे साधु ! तुं पंडित छे. ज्ञाता ज्ञेय छे, मर्यादामा रहेल मेधावी छे, विपय सुखनी तृष्णा तें दूर करी छे, तथा तुं वीर होवाथी कर्म विदारण करवामां शक्तिवान् छे, तेथी सर्वज्ञप्रणीत उपदेशना अनुसारे सर्वदा संयम अनुष्ठानमां वर्सजे. आ प्रमाणे सुधर्मास्वामि कहे छे:
धृत अध्ययननो चोथो उद्देशो समाप्त.
॥७०४॥
॥७०४॥
CHECEBLSAGE
धूत अध्ययन पंचम उद्देशो. चोथो कहीने पांचमो कहे छे. तेनो आ संबंध छे. गया उद्देशामां कर्म दूर करवा त्रण गौरव छोडवानुं बताव्यु, अने ते कर्म है विधनन उपसर्ग विधूनन विना संपूर्ण भावने अनुभवतुं नथी, तथा सत्कार पुरस्काररुप सन्मानना विधूनन विना गौरव त्रिकनी
विधुनना संपूर्णताने न पामे; एथी उपसर्ग सन्मानने विधूनन करवा आ उद्देशो कहे छे. आ संवन्धे-आवेला उद्देशाने आ पहेलं सूत्र छे. अस्वलितादि गुण युक्त उच्चार ते कहे छे:
से गिहेसु वा गिहतरेसु वा गामेसु वा गामंतरेसु वा नगरेसु वा नगरंतरेसु वा जणवयेसु वा जणवयंतरेसु वा गामनयरंतरे वा गामजणवयंतरे वा नगरचणवयंतरे वा संतेगइया
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