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बीजु शुं छे ? ते कहे छे:-चारित्रमा अस्थिर मतिवाला त्रण गौरवना बन्धायला बंनी परीषहोथी फरसातां संयम अथवा साधु आचा०
वेपथी तेओ दुर थाय छे. प्र०-शा माटे ? उ.-असंयम नामना जीवितना निमित्तान अर्थात् हवे, अमे सुखेथी संसारमा जीवीY, एम वीचारीने सावध अनुष्ठान
सूत्रम 18 करीने संयमथी दुर थाय छे, तेवा जीवातुं सुथाय छे ? ते कहे छे. ते कुसाधुओ घरवासथी नीकळ्या छतां ज्ञान दर्शन चारित्रना लि मूळ उत्तर गुणमां कंइ पण खामी आववाथी तेने दीक्षा पाळवी मुश्केल थाय छे, तेवा भ्रष्ट साधुओमुंजे थाय; ते कहे छे (हुप
अव्यय हेतुना अर्थमां छे.) जेथी असम्यग्अनुष्ठानथी दीक्षा छोडेला साधु बाळ बुद्धिवाळ। जे सामान्य पुरुषा छे, तेमनाथी पण . निंदाय छे. (ज्यां होय; त्यां तिरस्कार पामे छे.)
वळी, तेओ संयम मुकवाथी कुवाना अरहट्टना न्याये वारंवार नवी जाति [ जन्म ] मेळवे छे. P -तेओ केवा छे ? उ०-अधःसंयम स्थानमा वखते रहेला होय; अथवा अविद्याथी नीचे [कुमार्गे]. वर्तता होयः छतां PSI पोते पोताने विद्वान मानता लघुताथी आत्माने उंचे चडावे छे. ( पोताने हाथे पोतानी स्तुति करे छे.) वळी, पोते थोडं भणेला
होय; तोपण, मानथी उंचो बनीने रस अने साता गौरवनी बहुलताथी माने छे. के, हुं बहुश्रुत छु, अने आचार्य जे जाणे छे ते में M तत्वने थोडाज काळमां जाणी लीधुं छे. एवं मानीने आत्माने अहंकारी बनावे छे.
ते आत्मश्लाघाथीज संतोष पामतो नथी; पण, वीजा उत्तम साधुओनी निंदा करे छे ते बतावे छे. उदासीन ते रागद्वेष रहित मध्यस्थ साधुओ घणुं भणेला होवाथी शांत होय छे, तेवा आचार्य विगेरे ज्यारे ते साधुनी भूल
नावावरूनर