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चा०
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प्रमाणे आचार्य विगेरेने कुसाधु कडवां वचन कहे छे..
अथवा धर्मोपदेशक तीर्थकर विगेरे छे. तेमने पण कडवां वचन कहे छे. ते बतावे छे. कोइ वखत ते साधु भूल करे, त्यारे आचार्य ठपको आपे त्यारे कुसाधु कहे, के तीर्थङ्कर अमारुं गळं कापवाथी वधारे बीजुं शुं कहेनार छे ? विगेरे अनुचित वचन बोले छे. अने विद्याना खोटा मदना अवलेपथ मदांध बनीने शास्त्र रचनार गणधर भगवंताने पण दूषण आपे छे. वळी, आचार्यो दूषण आपे छे, एटलुंज नहि; पण, वीजा साधुओने पण कडवां म्हेणां संभळावे छे. सीलमंता उवसंता संखाए रोयमाणा असीला अणुवयमाणस्स बिइया मंदस्स बालया ( सू० १८९ )
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शील ते अढार हजार भेदवाळं छे, अथवा महाव्रतो पाळवानुं छे, तथा पांच इन्द्रियोनो जय करवानुं छे. कषायनो निग्रह छे, त्रण गुप्ति पाळवानी छे. एवं निर्मळ शीळ पाळे ते शीळवंत छे, तथा कपायने शांत करवाथी उपशांत छे.
शंका-शीळवान ग्रहण करवाथी उपशांत तेमां समाइ गया. त्यारे फरी केम का ?
उत्तर – कषायना निग्रहनुं प्रधानपणुं वताववा माटे, सम्यक्रीते जेनावडे कद्देवाय ते संख्या अथवा प्रज्ञा छे, तेना वडे | संयम अनुष्ठानमां पराक्रम करनारा आचार्यो होय; छतां, कोइ साधुना नवळा भाग्यथी सदाचार रहित ए आचार्यो छे. एवी निंदा करनारा, अथवा पछवाडे निंदा करनारा, अथवा मिथ्या दृष्टि विगेरे बोले के तेओ कुशील छे, एवं कहेतां पासत्था विगेरेनी आ चार्यने खोटां वचन कहेवा रुप आ वीजी मूर्खता छे.
एटले, कुसाधु प्रथम तो, पोते सारा चारित्रथी रहित छे, अने पोते सारा चारित्र पाळनार उयुक्त बिहारी उत्तम साधुने निंदे
सूत्रम्
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