________________
4
-
ॐासंबंधी धारण करेला होय छे. तथी प्राभृतिकाने आश्रयी कहे छे, ते एकाकी विहारमा बोजा सामान्य साधुथी विशेष प्रकारे अंतआचा० मांत कुलोमां दश प्रकारनी एपणा दोपरहित आहार विगेरेनी शुद्ध एपणावडे तथा सर्व एपणा ते वधी एपणा. आहार विगेरे ल
सूत्रम संबंधी उद्गम उत्पाद तथा ग्रास एपणा संबंधी परिशुद्ध विधिए संयममां वतै छे, बहुपणामां एक देशपणाने कहे छे, ते मर्यादामां ॥६७४॥ रहेलो मेधावी साधु संयममां वः वळी ते तेवां वीजां फुलोमां आहार सुगंधवाळो के दुर्गधवाळो होय, त्यां रागद्वेप न करे वळी ॥६७४॥
त्यां एकलविहार करतां मसाणमां प्रतिमा ए रहेतां यातुधान (राक्षस) विगेरेए करेला शब्दो भयकारक लागे; अथवा वीभत्स पाणीओ दीप्त जीभवाळां वाघ विगेरे] बीजा जीवोने पीडे; संतापे छे अने तेने पण संतापे तो, तुं तेवा विषय-दुःखना स्पर्शाने | सम्यक्प्रकारे धैर्य राखीने सहन कर; एबुं सुधर्मास्वामि जंबूस्वामिने कहे छे:
बीजो ऊद्देशो समाप्त थयो.
त्रीजो ऊद्देशो कहे छे. बीजो उद्देशो कही त्रीजो कहे छे. तेनो आ प्रमाणे संबंध छे. बीजामां कर्मधोवानुं बताव्यु; अने ते उपकरण शरीरना। विधूनन विना न थाय. माटे हवे, उपकरण विगेरेनुं विधूनन कहे छे. आवा संबंधे आवेला उद्देशानुं आ पहेलं सूत्र छे.
एवं खु मुणी आयाणं सया सुयक्खायधम्मे विहूयकप्पे निज्झोसइत्ता, जे अचेले परिसिए तस्स 18 णं भिक्खुस्स नो एवं भवइ-परिजुण्णे मे वत्थे वत्थं जाइस्सामि सुत्तं जाइस्सामि सूई जाइस्सामि
06-KUMAR