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आचा०
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मतुं नथी, (अर्थात् निगोदमां अनंतकाळ भ्रमण करे छे.) एज विषयनो उपसंहार करवा कहे छे. 'एवं' ए प्रमाणे भोगनो अभिलापी अंतरायवाळा काम भोगो जेमां अनेक प्रकारनां विघ्नो रहेलां छे, तेने चाहे छे, ते भोगो (न केवळ ते अकेवळ तेमांधी थाय ते.) अकेवळीक, (द्वंद्व - जोडकांवाळो छे. जेमनो प्रतिपक्ष पण छे, अथवा असंपूर्ण भोगो छे. जेने मेळवावा पाछा संसारमां पढे छे, अथवा (कामभोगने वीजीना बदले त्रीजीनो अर्थ लइए; तो) ते कामभोगोवडे भोगना अभिलाषीओ अतृप्त बनीनेज ( वधारे भोगसुख लेवा जतां ) शरीरनो नाश करे छे. ज्यारे, ते रांको आम मरण पामे छे त्यारे, वीजा उत्तम साधुओ जेमनो मोक्षसमीप छे, तेवा क्यांय पण, कोइपण रीते कोइपण वखत चरणनो परिणाम आवतां लघुकर्मनां कारणथी दरेकक्षणे चडताभाववाळा बने छे, ते बतावे छे.
अगे धम्मायाय आयाणप्पभिइसु पणिहिए चरे, अप्पलीयमाणे दढे सव्वं गिद्धिं परिन्नाय, एस पणए महामुणी, अइअच्च सवओ संगं न महं अस्थित्ति इय एगो अहं, अस्सि जयमाणे इत्थविरए अणगारे सङ्घओ मुंडे रीयंते, जे अचेले परिवुसिए संचिक्खड़ ओमोयरियाऐ, से आकुट्टे वा ए वा लुंचिए वा पलियं पकत्थ अदुवा पकत्थ अतहेहिं सदफासेहिं इय संखाए एगरे अन्न अभिन्नाय तितिक्खमाणे परिवए जे य हिरी जेय अहिरीमाणा (सू० १८३)
सूत्रम
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