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ॐ विषयनी मधुरताथी पवळ मोहनीय कर्मना उदयथी, अशुभ वेदनीयनो भाव एकदम प्रकट थवाथी, अयश-कीर्ति उत्कटपणे थवाथी, आचा० आयति (भविष्यनुं हित) ने तरछोडीने कार्य अकार्यने विचार्या विना महादुःखनो सागर स्वीकारीने वर्तमान सुखने देखनारा
सूत्रम् ॥६६७॥
3 कुलमां वर्तातो आचार नीचे नांखीने (उत्तम रत्नरुप) चारित्रने त्यजे छे !!! अने तेनो त्याग धर्मोपकरण त्यागवाथी थाय छे, ते 8 ॥६६७॥ द बतावे छे. वस्त्र ए शब्दथी क्षौमिक [सूत्रनां] कल्प (वस्त्र) लीधो छे, तथा पात्रां अने उननी कांबळ अथवा पात्रांनो नियोग तथा छ।
रजोहरण ए धर्मोपकरणोने बेदरकारीथी त्यजीने कोइ साधु फरीथी देशविरति [श्रावकनां व्रत] स्वीकारे छे, कोइ तो फक्त सम्यक्का दर्शनज राखे छे, कोइ तो तेनाथी पण भ्रष्ट थइ जाय छे, (बटली जाय छे.)
प्र० आQ दुर्लभ चारित्र पामीने पाछ केम तजी दे छे!
उ-परीषदो दुःखे करीने सहन थाय छे, तेथी क्रमेकरीने अथवा सामटा परिषहो आवतां सहन न करी शकवाथी परिपहथी P भागेला मोहना परवशपणाथी दुर्गतिने आगळ करीने मोक्षमार्ग (उत्तम चारित्र) ने त्यजे छे!!! ते रांकडाओ भोगो भोगवा माटे । त्यजे छे, छतां पापना उदयथी शुं थाय ? ते कहे छे.
विरुप कामोने पोताने वहाला मानी स्वीकारतो भोगना अध्ययवसायवाळो बनवा छतां, पोतानां अंतरायकर्मना उदयथी तेज क्षणे प्रव्रज्या मुक्या पठी अथवा भोगो प्राप्त थया पछी, अंतर्मुहर्त्तमां, अथवा कंडरीक राजर्षिनी माफक्र चारित्र मुक्या पछी एक 8 रात दिवसमां अपरिमाण (वधारे खावाने) लीधे शरीर भेदाय छे, आ प्रमाणे दुराचारना अध्यवसायथी, अथवा कुकर्म सेवीने
शीघ्र मरण पामताने पोताना आत्मा साथे चारित्र पाळवारूप धर्म देहनो भेद थतां तेवु शरीर अने पचेन्द्रियपणुं अनंताकाळे पण
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ॐनवन