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सूत्रम
पण प्राणीओने दुःखरुप चिकित्सा (उपाय) करवाथी फक्त नवां पापोज बंधाय छे, ते कहे छे, के हे शिष्यो ! विमळ विवेकरुप आचाई ज्ञान चक्षुवडे धारीने जुओ ! के के रोगोने दूर करवा चिकित्सा विधिओ समर्थ नथी.
प्र०-'जो एम छे तो शुं कर? ॥६६२॥ उ-'अलं' हे शिष्य तु सारा नरसानो विवेकवाळो छे; माटे तारे एवी पाप चिकित्सानी जरुर नथी! किंच-वळी पाणीने
दुःख देवारुप कृत्य बहु भयरुप होवाथी महा भय तरीके हे मुनि! तुं तेने जाण-(त्रण जगतना स्वभावने जाणे, माने ते मुनि छे) प्र-जो एम छे तो शुं करवू? उ-कोइ पण प्राणीने तुं हणतो नहिं; कारण के एक पण प्राणीने हणतां आठे प्रकारनां कर्मो बंधाय छे, अने तेनो क्षय न कराय तो संसार भ्रमण करावे छे. माटे महाभय छे, अथवा उपर कहेला रोगो बहु प्रकारे जाणीने कुवासना ने आश्रयी ते जाणवा, अर्थात् कामो (कुचेष्टाओ) पोतेज रोगरुप छे, एवं अतिशे जाणीने जेम आतुर बनेला कामचेष्टामां अंधा थएला जीवो वीजा प्राणीओने दुःख दे छे, (तेम तमारे न देवू) ए प्रमाणे रोग अने काम चेष्टामां आकुळ थयेला सावध अनुष्ठानमा प्रवर्तेलाने उपदेश आपवारुप महा भयरुप जीव हिंसा बतावीने तेवी हिंसा न करनारा गुणवान (मुनिराजो) ना स्वरुपने बताववा प्रस्ताव रचीने वतावे छे:
आयाण भो सुस्सूस! भो धूयवायं पवेयइस्लामि इह खल्लु अत्तत्ताए तेहिं तेहिं कुलेहिं आभसेएण अभिसंभूया अभिसंजाया। अभिनिव्वुडा अभिसंवुड्डा अभिसंबुद्धा अभिनिकता अणुपुव्वेण
SHRECORECASS
॥६६२॥
BR-बलबलमा
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