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॥६३१॥
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सत्त्व, रज, तमः ए वधांनी साम्यअवस्था प्रकृति छे. प्रकृतिथी महान, तेथी अहंकार, तेथी अग्यार इन्द्रियो, तेथी पांच तन्मात्र, आचा०
र तेथी पंचभूत, अने तेथी बुद्धि, ए विचारेल अर्थने पुरुष (आत्मा) जाणे छे. पण, ते पोते अकर्ता, अने निर्गुण छे. ते प्रमाणे सूत्रम् प्रकृति करे छे, अने पुरुष भोगवे छे. त्यारपछी, कैवल्य अवस्थामा हुँ दृष्टा छु. एवं निवर्त (दुर थाय) छे. विगेरे तेमनु मानवू युक्ति
॥६३१॥ विकळ होवाथी तेमना आंतरा विनाना मित्रोज मानशे, कारणके, प्रकृति अचेतन होवाथी केवीरीते आत्माना उपकार माटे क्रि-४ यानी प्रवृत्ति करशे? अने हुं दुःख देनारो छ. ए, आत्मा देखीने पोताना उपकारनी प्रवृत्ति पोते न करे ? कारणके प्रकृति अ-6
चेतन होवाथी तेने विकल्प थवानो संभवज नथी; अने प्रकृति जो, नित्य होय; तो, प्रवृत्तिनी निवृत्तिना अभाव थइ जाय; अने 13 पुरुपर्नु कर्तापणुं न होय; तो, संसारथी उद्वेग, अने मोक्षनी उत्कंठा विगेरेनो अभाव थशे. कां छे केः
___ न विरक्तो न निर्विण्णो, न भीतो भवबंधनात् । न मोक्षसुखकांक्षी वा, पुरुषो निष्क्रयात्मकः ॥१॥HI
ते विरक्त नथी; खेद पामेलो पण नथी; तेम, भवबंधनथी डरेलो नथी; अथवा, मोक्ष-सुखनो आकंक्षी नथी. एवा गुणवालो क्रियारहित पुरुष छे, नेनो उत्तर जैनाचार्य कहे छे:कः प्रव्रजति सांख्यानां, निष्क्रिये क्षेत्रभोक्तरि । निष्क्रियत्वात्कथं वाऽस्य, क्षेत्रभोक्तृत्वमिष्यते॥
आत्मांनिष्क्रिय छे.त्यारे,सांख्यमतमां दीक्षा कोण ले छे? तथा क्षेत्र भोगवामां निष्क्रयपणाथी तेनं क्षेत्र भोगव केवीरीते इच्छे छे? || बौद्धमनवाळा बधु क्षणिक माने छे. तेनो उत्तरः
SAEX-गरवकACACATION
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