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प्र०-केवी रीते ? उ.-"पवारण पवाय जाणिज्जा" प्रकृष्टवाद ते प्रवाद 'सर्वज्ञ वाक्य' छे, ते प्रवादवढे बीजा तीथिकोना आचा० त प्रवादनी परिक्षा करे, जेमके वैशेषिको तेनु भुवन विगेरे करनारने इश्वर मांने छे, कहे छे केः
अन्यो जंतुरनीशः स्यादात्मनः सुखदुःखयोः । ईश्वरप्रेरितो गच्छेत् स्वर्ग वा श्वभ्रमेव च । १॥ ॥६३०॥
बीजो जीव पोतानुं सुख दुःख भोगववा असमर्थ छे, पण इश्वरनी प्रेरणा थतां ते स्वर्गे अथवा नरकमां जाय छे.
आवा प्रवादोने जिनेश्वरना पवादवढे विचारवा जेमके आकाशमा इन्द्र धनुष्य विगेरे विस्रसा परिणामे परिणमीने पोताने रुपे बनेलां छे, तेनो बनावनार जुदो इश्वर विगेरे कारणनी कल्पना करवामां अति प्रसंग आवशे, तथा घटपट विगेरेमा दंड चक्र चीवर (कपड़े) पाणी कुंभार तुरी वेम शंलाका कुविद विगेरेना व्यापारथी आंतरा विना मळता आत्मलाभवाळाने मुकी तेने बदले नहीं से देखाता एवा इश्वरथी पदार्थ बने छे एवी कल्पना करतां रासभ (गधेडा)ने पण कर्ता का न गणवो ?
वादीनो उत्तर-तनुकरण विगेरेमां पण पोतानुं करेलु कृत्य अने तेथी बन्धाएल कर्म तेना विना अवंध्य छे. पण पोताना । कर्मनी विचित्रता छे. कर्मनी उपलब्धि सिवाय आQ क्याथी होय ? जैनाचार्य कहे छे, जो तमे एम मानो तो बन्नेमां ते समान
कथन छे, बळी कारणरुप माता पिता एक छतां अपत्यनी विचित्रता देखवाथी अधिक निमित्तवडे भाववं, अने ते इश्वरनो स्वी
कार करवा करतां अदृष्ट (नशीब) नेज इच्छ, सारुं छे? कारण के तेना विना सुख दुःख सुभग दुर्भग विगेरे जगतनी विचित्रता लन होय ! हवे सांख्य मतवाळा कहे छे.
लवक