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चा०
१६१५७॥
गौतम कहे छे:- हे भगवान् ! ते समये साधु मनमां एम चितवे के, "तेज सत्य, निःशङ्क छे. के जे, जिनेश्वरे कहेलुं छे.” तो, ते आज्ञा पाळवानो आराधक थाय के ?
उत्तर - हे गौतम! एम मनमां धारे; तो आराधक थाय छे.
वळी गुरु उपदेश आपे छे के, साधुए विचार के --
| वीतरागा हि सर्वज्ञा मिथ्या नं ब्रुवते क्वचित्। यस्मात्तस्माद्वचस्तेषां तथ्यं भ्रतार्थदर्शनम् ॥१॥ वीतराग पोते सर्वज्ञ छे. अने तेथी, निश्वे तेओ जुटुं न वोले. जेथी, तेमनुं वचन जीवोनुं स्वरुप बतावनाएं साधुं छे. विगेरे | समजी लेबुं. वळी, आ विचिकित्सा दीक्षा लेनारने आगममां मति स्थिर थयली न होवाथी थाय छे. तेवाए पण उपर बतावेलं रहस्य चिंतत्र ते कहे छे:
सड्रिस्त णं समणुन्नस्स संपवयमाणस्स समियंति मन्नमाणस्स एगया समिया होइ १, समियंति मन्नमाणस्स एगया असमिया होइ २, असमियंति मन्नमाणस्स एगया समिया होइ ३, असमियंति मन्नमाणस्स एगया असमिया होइ ४, समियंति मन्नमामाणस्स समिया वा असमिया वा समिया होड़ उवेहाए ५, असमियंति मन्नमा
सूत्रम्
॥६१७॥