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सूत्रम्
॥६०२॥
६ तेज वेदविद् छे अथवा आगम जाणनारा गणधर चौद पूर्वी विगेरे मुनिओ अप्रमादवडे शीघ्र अभाव करे छे. हवे अप्रमादी केवी आचा० रीतनो होय छे, ते कहे छे.
से पभूयदंसी पभूयपरिन्नाणे उवसंते समिए सहिए सयाजए, दटुं विडिवेएइ अ॥६०२॥
प्पाणं किमेस जणो करिस्सइ ?, एस से परमारामो जाओ लोगंमि इत्थीओ, मुणिणा हु एयं पवेइयं, उब्बाहिजमाणे गामधम्मेहि अवि निब्बलासए अवि ओमोयरियं कुजा अवि उहूं ठाणं ठाइज्जा अवि गामाणुगाम दूइजिज्जा अवि आहारं वुञ्छिदिज्जा अवि चए इत्थीसु मणं, पुवं दंडा पच्छा फासा पुठ्वं फासा पच्छा दंडा, इच्चेए कलहासंगकरा भवंति, पडिलेहाए आगमित्ता आणविज्जा अणासेवणाए त्तिबेमि, से नो काहिए नो पासणिए नो संपसारणिए नो मामए णो कयकिरिए वइगुत्ते अज्झप्पसंवुडे परिवजइ सया पावं एवं मोणं समणुवासिज्जासित्तिबेमि (सू० १५९) ॥ ५-४ ॥ लोकसारे चतुर्थः ॥
CIRCTERSNEHATRE
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