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आचा०
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छे, आ प्रमाणे गच्छमां पण योग्य विहार करनारो वीजा सीदाता (बेसी रहेला) ने बिहार करावे छे, आ प्रमाणे एकला विचरताना दोषोने जाणीने तथा गच्छमां विचरताना गुणो जाणीने कारणना अभावमां पंडित अने उम्मरलायक साधुए पण एकलविहार न करवो, तो अगीतार्थ अने नानी उमरवाळाए तो क्यांशी एकल बिहार करवो ?
शङ्का - जेनो संभव होय तेनो प्रतिषेध थाय, पण एकाकी विहारनो संभव नयी कारण के क्यो मूर्ख साधु सोवतीओने छोडीने वधा दुःखोतुं स्थान एवो एकल विहार पसंद करे !
उत्तरः- कर्मपरिणतिने कंइपण अशक्य नथी; ते बतावे छे.
स्वतंत्रता जे रोगरूप छे, तेने औषधतुल्य माननाराने वधां दुःखोना प्रवाहमां तणाताने बचवा माटे सेतु [ पूल] समान संपूर्ण कल्याणनुं एकस्थानरूप-शुभ आचारना आधाररूप-गच्छमा रहेनारा साधुने प्रमादथी भूल थतां तेने उपको अपाय; त्यारे, ते साधु मदुपदेशने न गणतां सारा धर्मने विचार्या विना कपाय- विपाकनी कडवाशने दीलमां न लेतां परमार्थने विचार्या विना कुल पुत्रता (खानदानी) पछवाडे मूकी वचन मात्रथी पण कोइने उपको आपतां सुखना वांछको वनवा माटे न गणाय एटली आपदावाळा थवा माटे गच्छमांथी नीकली जाय छे, अने पछी तेओ आ लोक तथा परलोकना अपायो (दुःखोने) मेळवे छे. कहां छेःजह सायरंमि मीणा, संखोहं सायरस्स असहंता । णिति तओ सुकामी निग्गयमित्ता विणस्संति ॥ १॥
जेम सागस्मां रहेलां माछलां समुद्रनो क्षोभ न सहन करीने सुख मेळववा बहार जतां नाश पामे छे, तेज प्रमाणे सुखाभिलाषी
सूत्रम्
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