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अथवा बीजी प्रतिमां 'जुद्धारियं च दुल्लहं' पाठ छे, तेमा संग्राम (लडाइन) युद्ध अनार्य जंगलीपणान] छे, अने परिपड & आंचा
विगेरेथी लडq ते आर्य युद्ध छे, तेथी ते दुर्लभ छे. माटे हे शिष्य! तेनी साथे युद्ध कर, तेथी तारां वधां कर्मना क्षयरुप-मोक्ष थोडा सूत्रम्
3 वखतमांज थशे; अने तेथी भावयुद्ध करवा योग्य औदारिक-शरीर मेळवीने कोइक मनुष्य तो, तेज भवे मरुदेवी माफक वधां कर्मनो ४ ॥५८५॥ क्षय करे छे, कोइ तो, भरत राजा माफक (पूर्व भवो आश्रयी) सात आठ भवमां मोक्ष मेळवे छे, अने कोइ ती अर्धपुद्गल परावर्तन
॥५८५॥ | थया पछी मोडा मेळवे छे, पण अपर (अभवी) मोक्षे नहीं जाय शा माटे? ते कहे छे, जेम जे प्रकारे आ संसारमा कुशल तीर्थ2 करोए परिज्ञा विवेक (परिज्ञान विशिष्टता) कोइनो कंइ पण अध्यवसाय संसारनो विचित्र हेतु वताव्यो छे, अने तेज बुद्धिमाने स्वीका
रवो जोइए, हवे पूर्व कहेलुं परिज्ञानन जुदाजुदापणुं बताववा कहे छे, ल (भव्य अने अभव्यपणुं स्वभावथीज छे, भव्य काळांतरे पण मोक्षमा जशे, पण अभव्य नहीं जाय) कोइ दुर्लभवोधि दुर्लभ पण ही
मनुष्यपणुं पामीने तथा मोक्षगमनना एक हेतुरूप धर्म पामीने पण कर्मना उदयथी फरीथी पण धर्मथी भ्रष्टथइ वाल ( मूर्ख) जीव ४ गर्भ विगेरेमा जाय छे, एटले गर्भ जेवां प्रथम छे, एवी कुमार यौवन विगेरे अवस्थाओमां गृद्ध थइ जाय छे, अने (एने पियमानीने)/81 है ए अवस्थाओ साथे मारो वियोग न थाओ एवा विचारवाळो बने छे, अथवा धर्मथी भ्रष्ट थइने एवां काम करे छे, के जेनावडे ते
बाळजीव तेवी तेवी गर्भ विगेरेनी पीडाओना स्थानमा उत्पन्न थाय छे, "रिजई" (कोइ प्रतिमां पाठ छे) एटले जाय छे (एवो 18 अर्थ लेवो) प्र०-ठीक, एम दृशे पण आq क्या कबु छे ? उ०-जे पूर्वे कयु छे, के आ जिनेश्वरना वचनमा प्रकर्षथी कयु छे. ल अने हवे पछी पण तेज कहे छे, 'रूपे-चक्षु इन्द्रियना विषयमां रागी थएलो, अथवा रस इन्द्रियमा स्पर्श इन्द्रियमां रागी थएलोर
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