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सूत्रम्
॥५८४॥
8. स्वेच्छाए चाली तारु अहित करे छे, तेथी एनेज सुमार्गे चालीने वश कर, बीजा बाह्य शत्रु साये युद्ध करवानी शी जरुर छ ? अंदर आचा०
रहेला तारा छ रिपुनो जय करवाथी वधुं कार्य सिद्ध थशे, तेथी बीजु कंइ पण वधारे दुष्कर नथी पण आज संयम विगेरे सामग्री
* अगाध संसारसमुद्रमां भटकता जीवने करोडो करोडो (हजारो) भवे पण मळवी दुर्लभ छे ! ते सूत्रकार बतावे छे:॥५८४॥ जुद्धारिहं खल्लु दुल्लहं, जहित्थ कुसलेहिं परिन्नाविवेगे भासिए, चुए हु बाले गब्भाइसु रजइ,
अस्सि चेयं पवुच्चइ, रूबंसि वा छणंसि वा, से हु एगे संविद्धपहे मुणी, अन्नहा लोगमुवेहमाणे, इय कम्म परिणाय सवसो से न हिंसइ, संजमई नो पगब्भइ, उवेहमाणो पत्तेयं सायं,
वण्णाएसी नारभे कंचणं सवलोए एगप्पमुहे विदिसप्पइन्ने निविण्णचारी अरए पयासु ॥१५॥ ___ आ औदारिक शरीर भाव युद्ध करवाने योग्य छे, (खलु शब्द निश्चयना अर्थमां छे, अने ते भिन्न क्रमवाळो छे) ते खरेखर IPI दुर्लभज छे, अर्थात् ते दुःखथीज प्राप्त थाय छे, कधु छे केःननु पुनरिदमतिदुर्लभमगाधसंसारजलधिविभ्रष्टम, मानुष्यं खद्योतकतडिल्लताविलसितप्रतिमम् ॥१॥
आ अति दुर्लभ मनुष्यपणुं अगाध संसारसमुद्रमां पडेलाने खरजुवा (अगीयो कीडो) जेवू के वीजळीना झवकारा जे थोडो काळ रहेनारूं मळेलुं छे! विगेरे समजवु जोइए.
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BR- लवन