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RECORAKHILE
तेज प्रमाणे घणा प्रकारे शठपणुं करे तेथी बहु शठ कहेवाय, तथा संसारी कृत्यना घणा विचारो करे तेथी बहु संकल्पी (संकल्पवाळो) कहेवाय एज प्रमाणे चोर विगेरेनी पण एक चर्या (अप्रशस्तमां) जाणवी, आवी रीतनो होय तेनी केवी अवस्था थाय, ते कहे छे:
'आसव' विगेरे-आत्रवो ते हिंसा विगेरे छे, तेमां सक्त (संग) राखे ते आस्रव सक्त कहेवाय, अर्थात् हिंसा विगेरे पाप करBI नारो होय. 'पलितं'-ते कर्म-तेनावडे अविच्छिन्न छे. एटले कर्मथी अवष्टब्ध (लेपायलो) छे. आवीरीते अनेक दुर्गुणवाळो होय, [SIMusan छतां पण पोते (लोकोने ठगवा)-शुं कहे ते कहे छे:
उट्टिय-धर्म चरण (चारित्र) माटे हुँ उद्यम करनारो छ, एटले पतित साधु पण एज प्रमाणे बोले के हुँ चारित्र पाळु छ, ४. अने ते प्रमाणे न पाळवाथी कर्म वडे लेपाय छे, अने ते साधु वेपधारी मोडेथी पोताने साधु वोलतो आस्रवोमां वर्ततो छतां आजीविकाना भयथी केवी रीते वर्ते छे. ते कहे छे. 'मामे-मने बीजा कोइ पाप करतां न देखो एथी ते पाप छानां करे छे, अथवा ते अज्ञानथी अथवा प्रमादना दोपथी पाप करे छे, वळी 'सयाय'-सतत (निरंतर) मोहनीय कर्मना उदयथी अथवा अज्ञानथी मृढ बनेलो श्रुत अने चारित्र धर्मने जाणतो नथी, एटले तेने धर्म अधर्म नो विवेक नथी, जो आम छे, तो शुं करवू ते कहे छे:
अट्टा-विषय कपायोथी आर्त (पीडायला) बनीने तेओ आठ मकारनां कर्म बांधवामा कोविद (कुशळ) छे. पण धर्म अनुष्ठानमां कुशळ नथी, [ एवं गुरु सांभळनार भव्य जीवोने आश्रयी कहे छे ] हे जंतुओ! हे मनुष्यो ! तमे जुओ ! (मनुष्य धर्म करवाने योग्य होबाथी मनुज शब्द लीधेल छे) हवे क्या मनुष्यो निरंतर धर्मने न समजतां कर्म वन्धमा कुशल छे ? ते कहे छे:। 'जे अणुवरया-जे कोइ ( चोकस अमुक एम नहीं) पण पाप अनुष्ठानथी विरक्त [निवृत्त न होय, तेओ ज्ञान दर्शन चारित्र
दोपथी पाप कर
अधर्म नो विवक
बांधवामा कोविद र
HABASABHA