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________________ 6 आचा० सूत्रम् -X-15 ॥५६४॥ AERA ॥५६४॥ - एनाथी उलटुं अप्रशस्त चग्ण ते ग्रहस्थ अने अन्यदर्शीनीओनुं संसारी वर्तन छे. तेथी आ प्रमाणे द्रव्य विगेरे चार प्रकार चरण वतावीने वर्तमानमां उपयोगीपणे साधुनो प्रशस्त भाव चार प्रश्न द्वाराए नियुक्तिकार बतावे छे. लोगे चउविहंमी, समणस्स चउबिहो कहं चारो? होई विई अहिगारो, विसेसओ खित्तकालेसुं ॥२४॥ चार प्रकारना द्रव्य क्षेत्र काळ अने भावरुप लोकमां श्रम सहेनार ते श्रमण (यति) नो केवीरीतनो द्रव्यादि चार प्रकारनो चार छे? उत्तर-अहीं धृति (धैर्यता) नो अधिकार छे, एटले चार प्रकारे धैर्यता राखवी. -:- चार प्रकारनी धैर्यता :द्रव्यथी धैर्यता-एटले अरस (रस रहित) तथा विरस ते तुच्छ तथा लुरूखु विगेरे भोजन मळे, तो पण तेमां धैर्यता राखवी. क्षेत्र धैर्यता-एटले कुतीर्थिके लोकोने पोताना रागी बनाव्या होय, अथवा कुदरतीज लोको अभद्रक होय (तो साधुनुं बहु मान न करे तेथी) साधुए उद्वेग न करवो, काळ धैर्यता-ते दुकाळ विगेरे मुश्केलीना वखतमा जेवू भोजन विगेरे मळे, तेमां संतोष राखवो. भाव धैर्यता-ते कोइ आक्रोश करे हांसी करे अपमान करे, तोपण क्रोधायमान न थवं, पण विशेष करीने तो क्षेत्रकाळमां हलकापणुं होय त्यां वधारे धैर्यता राखवानी छे, कारण के पाये तेना निमित्तेज द्रव्य अने भावमां अधैर्यता थाय छे. हवे फरीथी द्रव्यादिकना भांगाथी साधुनो चार कहे छे. 1 -5054 STOR- MEG
SR No.010803
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrabahu, Shilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages890
LanguagePrakrit, Sanskrit, Gujarati
ClassificationManuscript, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size40 MB
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