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छे, तथा ते द्रव्यथी भावथी एम बे भेदे छे, तेमां द्रव्यथी ते गृहस्थ पाखंडी विगेरेनु विषय कपाय विगेरे माटे एकलानुं फरवु थाय,
6 अने भावथी अप्रशस्त न होय कारण के राग द्वेपना अभावथी ते एक चर्या होय छे, अने रागद्वेषना अभावमां अप्रशस्त एक चर्या आचा० ते द्रव्यथी प्रतिमा धारण करेला गच्छमांथी नीकळेला जिनकल्पीने संघ विगेरेना कार्य माटे एकला जवू पडे ते छे, अने भावथी
सूत्रम् ॥५६॥ तो प्रशस्त एक चर्या राग द्वेपना विरहथी थाय छे, तेमां द्रव्यथी तथा भावथी एकचर्या ते केवळ ज्ञान उत्पन्न न थथेला तीर्थक-15५६॥
रोए संयम लीधा पछीनो छदमस्थ काल छे, वाकीना वधा चार भांगामां आवे छे, तेमां प्रथम अप्रशस्त 'द्रव्य एक चर्यानु' दृष्टांत कहे छे:-पूर्वे देशमां धान्य पूरक नामना संनिवेशमा जुवान वयमां देवकुमार जेवा रुपवान तापसे गामना नीकळवाना रस्ता उपर । छठनो तप शरु कर्यो, बीजा तापसे पासेना गाममां पर्वतनी गुफामां अठम तप करीने अतापना लेवा लाग्यो पछी गायमांथी नीक-16
ळतां ते तापसने ठंड ताप सहेतो देखीने लोकोए तेना गुणोथी रंजीत थइने आहार विगेरेथी तेनु सन्मान कयु, लोकोए पूजतां तथा सत्कार करतां ते तपासे लोकोने कथु के माराथी पण वीजो पहाडनी गुफावाळो तापस वधारे कष्ट सहन करे छे, तेथी लोकोए तेने वारंवार स्तुति करतो जोइ तेमणे ते वीजा तापसनी पण पूजा करी, अने पारकाना गुणो गावा दुष्कर छे, एम जाणीने तेनो
पण सत्कार कर्यो. आ प्रमाणे बन्ने भाइए एकला रहीने पूजावा माटे तप कर्यो, तेथी ते अप्रशस्त छे. आ प्रमाणे वीजा पण एक है. चर्याना दृष्टांतो यथा संभव विचारी लेवा. आ प्रमाणे सूत्रार्थ कहेतां सूत्र स्पर्शिक नियुक्तिवडे नियुक्तिकार कहे छे.
चारो चरीया चरणं, एगहें वंजणं तहिं छक्क। दव्वं तु दारु संकम जल थल चाराइयं बहुहा ॥२४॥
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