________________
घातिकर्मो क्षय थवाथी केवळी ते संसारना मध्यमां न गणाय, तेम दूर पण नथी, कारणके चार अघातिकर्म बाकी छे, आ (केवJGळीने आश्रयी छे) जेणे ग्रंथी भेद करीने दुष्पाप्य एवं सम्यक्त्व प्राप्त कर्यु अने संसारना आरातीय तीरे (मोक्षमा जवानी तैयारी- F... आचा०४ वाळो) केवा अध्यवसायवाळो होय छे, ते कहे छे:
१ सूत्रम् से पासइ फुसियमवि कुसग्गे पणुन्नं निवइयं वाएरियं, एवं बालस्स जीवियं मंदस्स अवियणाओ, कूराई कम्माई बाले पकुवमाणे तेण दुकूखेण मृढे विप्परिआसमुवेइ, मोहेण गन्म
मरणाइ एइ, एत्थ मोहे पुणो पुणो [ सू० १४२]
जेजें मिथ्याव पडल (पडदो) दूर थयेल छे, अने सम्यक्त्वना प्रभावथी संसारनी असारता जाणेली छे, (दृश्य धातुनो अर्थ प्राप्तिना। अर्थमां छे) ते जाणे छे के, कुशना अग्रभागे रहेला पाणीना बिंदु माफक संसारी (बाल) जीवनुं आयुष्य छे, अने ते पाणीना बिंदु उपर उपरथी आवता पाणीना बीजा बिंदुथी प्रेरणा थतां वायुना झपाटाथी पडतां वार न लागे, तेम आ बालजीवनुं जीवित छे, तेनुं क्षणमात्र जीवित जाणीने, तख जाणनारो डाह्यो साधु तेमां मोह न करे, माटे बाळ शब्द लीधो छे, एटले बाळ ते अज्ञानी छे, ते अज्ञानपणाथी जीवितने बहु माने छे, तेथी बाळ छे, मंद छे, सद्असत्ना विवेकथी शून्य छे, तेथी बुद्धिहीन होवाथीज पर
थने जाणतो नथी, अने परमार्थने न जाणवाथीज जीवितने बहु माने छे, अने परमार्थ न जाणवार्थी ते शुं करे छे, ते कहे छे, & 'कुरागि' विगेरे ते निर्दयतानां कृत्यो करे छे, हिंसा जूठ विगेरे जे वीजा लोकोने आश्चर्य पमाडे तेवां महान पाप अथवा अढारे ।
ar
-