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मो, नाणं वीराणं समियाण सहियाणं सयाजयाण संघड देसीणं आओ व रयाणं अहा तह आचा० लोयं समु वेहमाणाणं किमस्थि उवाहो ?, पासगस्स न विजइ नत्थि तिबेमि (सू० १४०)
सूत्रम् । चतुर्थे चतुर्थः ४-४ । इति सम्यक्त्वाध्ययनम् ॥ ४ ॥ ॥५४६॥ सम्यग्वाद अने निरबद्य तप तथा चारित्र कपु. हवे, तेनुं फळ कहे छ:-'जेखलु' विगेरे (खलु शब्द वाक्यनी शोभा माटे छे.) IA
॥५४६॥ जे पूर्व अनंता तीर्थकरो थया तथा थवाना छे, अने वर्तमानमा केटलाक छे, तेओ कर्मशत्रुने विदारवामां समर्थ होवाथी वीरो छे, ॐ समितिथी युक्त तथा ज्ञानादिथी सहित छे. सारा संयमथी यनावाला छे. 'संघड दंसिणोति शुभ अशुभने निरंतर संपूर्णदर्शी (देख-४
नार) छे. पापकर्मरुप-आत्माथी उपरत छे. तेओ जेवीरीते लोक चौदराज प्रमाण छे, तेने अथवा, कर्मलोक जे बधी दिशा पूर्व। विगेरेमा रहेल छे, तेनी जीव अजीवनी व्यवस्थाने देखनारा छे. तेओ सत्य संयमतपमां स्थिर रहेला छे. अर्थात तेमने त्रिकाळ ॐ विषय संबंधी संपूर्ण देखाय छे. पूर्वे अनंता यया; ते संयममा रह्या. पंदर कर्मभूमिमां संख्याता तीर्थकर-सययमा रहेला छे, तथा
भविष्यमां अनंता थवाना छे. तेओ संयममां स्थित रहेशेतेओनो त्रणे काळनोज अभिप्राय (बोध) छे, ते हुं तमने कहीश; एवंद
सुधर्मास्वामी शिष्योने कहे :-तमे सांभळो. पूर्वे कहेला उत्तम विशेषणोवाळानुं ज्ञान (अभिप्राय) आ छे के, जे कर्मजनित उपाधि Bछे, ते नारक विगेरे चार योनिमां जन्म लेवो; मुखीदुःखी, सुभग, दुर्भग, पर्याप्त-अपर्याप्त विगेरे नवां नवां मळे छे के नहि ? ते
संबंधी परमतवाळाने शंका छ के ? फरी मळी शके ? तेथी, ते तीर्थकरो साक्षात् जोइने कहे छे के:-तेवा साक्षात देखनाराने ते ते
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