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पन करे छे अने कहे छे, अमे आq कहीए छीए, अने प्ररुपणा करीए छीए केः-वधा पाण, जीव, भूत, सत्व ए चारे शरीरधारी जीवो छे, तेमने हणवा नहि, हुकम चलाववो नहि, संग्रह करवो नहि, संतापवा नदि, पीडा आपवी नहि, उपद्रव करवा नहि. अहोआज दोष नथी. (अर्थात् कोइपण जीवने कोद पण रीते पीडा न आपनारं संयमज निर्दोष छे,) आ आर्य पुरुषोनुं वचन छे. आq कहेवाथी हिंसा प्रिय नेतर कहे छे, के अमने तमारुं वचन अनार्य लागे छे.
जैनाचार्य:-तमारूं कहे, तमारा एक दिलवाला मित्रोज स्वीकारी शकशे. कारण के ते युक्ति रहित छे. तेने माटेज फरी कहे छे, के पोतानी वार (वाणी) रुप यंत्र वडे बंधायला वादीओ पोतानी कुवाणीथी पाछा नहि फरे. (आग्रह पकडी राखशे) तेवा वादी (जनेतर) ने तेमना मानेला आगमनी व्यवस्था करीने तेनुं विरुप (अनुचित) पणुं बताववा बडे जैनाचार्य प्रश्न पूछे
छे. अथवा प्रथम प्रश्न करनारा दरेक वादीओने व्यवस्थापीने जैनाचार्य तरफथी प्रश्न पूछाय छे के-बोलो! वाद करनारा जैनेतर के बंधुओ तमने साता (सुख) मनने आनंद उपजावनारा छे, के दुःख ? जो एम कहे के सुख वहालुं छे, तो तमारा आगम (सिद्धांत)
ने प्रत्यक्ष तथा लोकना मानवा प्रमाणे वाधा थशे. (तमारो सिद्धांत खोटो थशे.) कदी तेओ लुचाइथी जुटुं कहे के अमने दुःख मिय छे, तो तेवा वादीओने पोतानी वाक जालमां बंधायलाने आ प्रमाणे कहे, के तमने जेम दुःख प्रिय छे तेम सर्वे पाणी मात्रने
दुःख प्रिय नथी, पण अप्रिय छे, अशांतिकर छे, महा भयरुप छे. छतां हठ ग्रहीने ते न माने तो कहे, के तमारु बोलQ सत्य ६ क्यारे थाय, के ते प्रमाणरुप बने, पण तेवु प्रमाण मळवू दुर्लभ छे के सुखने बदले दुःख कोइ पण प्रिय माने ? माटे तमारे अथवा
दरेक मोक्षाभिलाषी के सुखना अभिलापीए कोइपण जीवोने हणवा नहि, पीडवा नहिं तथा केदमां नाखवा नहिं विगेरे जाणवू. ते
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