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सूत्रम्
॥५०२॥
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5 आश्रयी जाणवो, एटले भीम कहेवाथी भीमसेन भामाथी सत्यभामा थाय, ते प्रमाणे छे. मोहनीयकर्मना अांत भागो छे, तेने आचाखपाववानी इच्छावालो असंख्येय गुण निर्जरा करनारो जाणवो, त्यारपछी क्षपक [क्षय करनारो] जाणवो, त्यारपछी क्षीण अन
तानुबधी कषायवाळो जाणवो, तेज दर्शनमोहनीयनी त्रण प्रकृतिमा क्रियाना सन्मुखमां उभा रहेल अपवर्गनुं त्रिक जाणवू, त्यार ॥५०॥ पछी सात प्रकृति क्षीण थवाथी उपशमश्रेणिमा चढेलो असंख्येय गुण निर्जरावाळो जाणवो, त्यार पछी उपशांत मोहवाळो जाणवो
पत्यार पछी चारित्रमोहनीयने क्षय करनारो जाणवो, त्यार पछी क्षीणमोहवाळो जाणवो, अहियां अभिमुख विगेरे त्रण यथासंभव
योजना करवी, त्यार पछी भवस्थ केवळी (जिन) जाणवा त्यारपछी शैलेशी अवस्थावाळी असंख्येय गुण निर्जरावालो जाणवो तेथी ए प्रमाणे कर्म निर्जरा माटे असंख्येय लोकआकाश प्रदेश प्रमाण बनावेल संयम स्थानना प्रचयथी उत्पन्न थयेल श्रेणि छे ।
ते उत्तरोत्तर असंख्येय गुणवाळी जाणवी, कारण के उत्तरोत्तर प्रवर्धमान अध्यवसायना कंडकनो स्वीकार छे, [जेम संयम पर्याय ४ वधे तेम चारित्रमा आत्मानी निर्मळता वधे.]
काळथी तो तेथी विपरीत अयोगी केवळीथी मांडीने प्रतिलोम पणे संख्येय गुणवाळी श्रेणिवडे काळ जाणवो, तेनो अर्थ आ छे, जेटला काळवडे अयोगी केवळो जेटलां कर्म खपावे तेटलां कर्म संयोगी केवळी संख्येय गुणाकाळवडे खपावे छे एप्रमाणे प्रतिलोमपणे
जेटला काळमां धर्म पूछवानी इच्छावाळो छे, त्यांसुधी जाणवं, नीचला गुणस्थानमा काळ वधारे थाय अने की ओछां खपे.) व आ प्रमाणे बतावतां सिद्ध कर्यु के सम्यग्दर्शन पामेलाने तप ज्ञान अने चरण सफळ थाय छे, पण जो कोइ उपाधि (संसारी है वासना) वडे करे तो ते सफळ यता नथी, ते उपाधि कइ छे, ते हवे बताये छे,
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PERISHORE