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सच्चस्स आणाए से उवहिए मेहावी मारं तरइ, सहिओ धम्ममायाय सेयं समणु पस्सइ (सू०११८) || सूत्रम् आचा०
जे पुरुष विषय संगनां कर्म जाणीने छोडनार होय तेने तुं तारनारो मानजे; तथा बधा पाप धर्मो (कारणो) ने जे आलय १७९॥ ॥४७९॥
(घर) दूर छे. ते दूरालय (मोक्ष) अथवा मोक्ष मार्ग (संयम) छे. ते मोक्ष मार्ग जेने होय ते दरालयिक छे,
हवे हेतु तथा हेतुवालो पदार्थ जणाववा गत प्रत्यागत मूत्र कहे छे.
(वीजी रीते) कहे छे, जेने दुरालयिक जाणे तेने उच्चालयिक (तारनारो) जाणे, एनो सार आ छे. जे कर्म तथा आस्रव द्वारनो रोकनार छे तेज मोक्ष मार्गमा रहेलो छे अथवा मुक्त थएलो छ अथवा जे सन्मार्गे वर्तन करे ते कर्मनो काढनारो छे. अने तेज आत्मानो मित्र छे, तेथी कहे छे, हे पुरुष! हे जीव! आत्मानेज ओळखीने धर्मध्यानथी वहार इन्द्रियोना विषयस्वादने लेता मनने रोकीने आ प्रकारे दुःखना पासामांथी आत्माने मुकावजे! ए प्रमाणे कर्मोने दूर करी आत्मा आत्मानो मित्र बने छे. वळी गुरु कहे छे, हे पुरुष! सदाचरणवाळा पुरुषर्नु हित करनार सत्य तेज संयम छे. ते संयमनेज वीजा व्यापारथीज निरपेक्ष तुं वनीने
जाण, अने ते प्रमाणे वर्त्तवानी परिक्षावडे प्रयत्न कर, अथवा आज सत्य जाण, के हे शिष्य! गुरु साक्षिए लीधेलां महावतोनी प्रतिIMज्ञानो निर्वाहकया, अथवा सत्य एटले जैनागम, तेनुं संपूर्ण ज्ञान मेळव, अने मोक्षाभिलापीए ते प्रमाणे व्रतोतुं पालन कर.
म०-शा माटे? उ०-सत्य जैनागमनी आज्ञा प्रमाणे वर्तीने मेघावी (बुद्धिमान) साधु मार [संसार ने तरे छे. वली सहित ४ ते झानादिथी युक्त अथवा हित सहित श्रुत चरित्र बन्ने प्रकारना धर्म ग्रहण करीने साधु शुं करे, ते कहे छे.
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HIRAGSAX