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आचा०
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तथा मन, वचन, कायानी सावध - क्रिया छोडवाथी गुप्त रहे; अथवा काचवा माफक पोतानुं शरीर संभाळी राखे; के, कोइ जीवने पीडा न थाय; ते संवृतगात्र मुनि छे, अने ते आलीन गुप्त कहेवाय छे, तेवो मुनि साधुनां अनुष्ठाननो बरोबर रीते करे. मुमुक्षु साधुने पोतानां आत्मवळथी संयम-अनुष्ठान फळवालुं थाय छे, पण पारकाना उपरोध ( आग्रहथी) नहीं एम बतावे छे. गुरु शिष्य ने कहे छे:- हे पुरुष! जो, तें ग्रह (घर) पुत्र, स्त्री, धन-धान्य, सोनुं विगेरेथी रहित तृण अने मणि- मोतीमां, तथा ढे सोनामां समानदृष्टि राखनार मोक्षार्थी जीवने पण कदाच उपसर्ग आवतां व्याकुळ मति थतां मित्र विगेरेनी आकांक्षा थाय; तो ते दूर करवा कहे छे: - ( हे शिष्य !) पुरुष एटले, सुखदुःखथी पूर्ण माटे पुरुष अथवा पुरिमां शयन करवाथी पुरुष (जीव) छे, तेमां वधा जीवोमां उपदेश, तथा संयम-अनुष्ठान करवामां मनुष्य योग्य होवाथी तेने आश्रयी कहे छे. एटले सुशिष्य ने कहे; अथवा कोई पुरुष संसारथी खेद पामेलो खराब अवस्थामां होय; अने ते पोताना आत्माने शीखामण आपतो होय; अथवा अन्य भव्यात्माने साधु उपदेश आपे के
" हे पुरुष ! हे जीव ! सारां अनुष्ठान करवाथी तुंज तारो मित्र छे, अने पापकर्म करवाथी तुंज तारो शत्रु छे! तोपछी, बीजा मित्र केम शोधे छे? कारण के, उपकार करे ते मित्र छे अने ते उपकारी परमार्थ - दृष्टिए अत्यंत अने एकांत - गुण युक्त सन्मार्गे चालता आत्माने छोडीने बीजो कोइ शोधवो शक्य नथी; अने संसारनां कार्यमा सहायकारीपणे वीजाने मित्रपणे मानवो ते मोहनुं विजृंभन ( चेष्टा ) छे. कारण के संसारीनी मित्रताथी परिणामे मोटा दुःखमां पडवारूप संसार समुद्रमां भ्रमण कराववाथी ते खरी रीते अमित्रज छे! तेनो सार आ छे.
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सूत्रम
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