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आचा०
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जे अनवमदर्शी छे ते निसन्न छे एटले पाप कर्मोथी खेदी वनीने ते करतो नथी, अथवा पाप कर्मोथी दूर रहे छे. बळी बीजा गुणो मेळववा बतावे छे.
कोहामा हणिया य वीरे, लोभस्स पासे निरयं महंतं तम्हा य वीरे विरए वहाओ, छिंदिज सायं लहुभूयगामी ॥१॥ गंथं परिपणाय इहऽज ! धीरे सायं परिषणाय, चरिज्ज देते । उम्मज लधुं इह माणवेहिं, नोपाणिणं पाणे समारभिजा सि तिबेमि ॥ द्वितीय उद्देशकः ३-२ ॥
क्रोध जेमा पहेलो छे ते क्रोधादि कषायो छे. तथा जेनावडे मपाय ते मान, एटले अनंतानुबन्धी विगेरे कपायोना चार भेदो छेते अथवा क्रोध अने मान जे क्रोधनुं कारण छे ते गर्वने साधु हणे अने ते हणनारो वीर छे, तथा जेम द्वेषरूप क्रोध मानने हणे, तेमज राग दूर करवा कहे छे. लोभ पण अनंतानुबंधी विगेरे चार प्रकारनो छे तेनी स्थिति अने विपाकने जो, कारण तेनी स्थिति सूक्ष्म संपराय नामना दशमा गुणस्थान सुधी मोटी छे, अने तेनो विपाक अप्रतिष्ठान विगेरे नरकवासनी प्राप्ति सुधी छे.
तेथी सूत्रमांकधुं छे के “गच्छा मणुआ य सत्तमिं पुढवि" माछलां अने मनुष्यो मरीने सातमी नारकी सुधी जाय छे, ते प्रमाणे ते मोटा लोभमां परवश थइने सातमी नारकीमां दुःख भोगवे छे.
तेथी शुं कर ते कहे छे
जो लोभथी आवुं दुःख छे तो प्राणी वध विगेरेनी प्रवृत्तिथी नरकमां जनुं न पडे माटे वीर पुरुष लोभथी दूर रहे. वळी शोकने
सूत्रम्
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