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सच्चमि घिई कुवहा, एत्थोवरए मेहावी, सवं पावं कम्मं जोसइ (सू० ११२) आचा उत्तम जीवोने हित करनार ते सत्य छे, अने तेनेज संयम कहे छे. ते संयममा धैर्यता राख, अथवा यथावस्थित वस्तुनुं स्वरूप । सूत्रम्
जिनेश्वरे बताववाथी तेमनुं कहेलं मौनींद्र आगम (जैन सिद्धांत) सत्य (तत्व) छे. ते भगवंतना बचनमा उपरत [अतिशय रक्त] बनीने ॥४६१॥ 15 मेधावी [तत्वदर्शी साधु वधां पाप कर्म जे संसार समुद्रमा भ्रमण करावे छे तेने संयम अनुष्ठान तथा तप बढे] क्षय करे छे. आ
॥४६॥ ६ प्रमाणे अप्रमादी साधुना उत्तम गुणो वताव्या ते अप्रमादनो शत्रु प्रमाद छे, ते कषाय विगेरे प्रमादथी प्रमत्त बनेलो केवो दुर्गुणी
थाय छे. ते कहे छे. ____ अणेगचित्ते खल्लु अयं पुरिसे, से केयणं अरिहए पूरिणए, से अण्णवहाए अण्णपरियावाए
अण्णपरिग्गहाए जणवयवहाए जणवयपरियावाए जणवयपरिग्गहाए (सू० १९३)
खेति वेपार मजुरी विगेरे अनेक प्रकारना कार्यमां तेनुं चित्त लागवाथी ते संसारी जीव अनेक चित्तवाळोज छे. एटले संसार सुखनो अभिलाषी अनेक चित्त (चंचळ चित्त) वाळो होय छे. "आ पुरुष" एम कहेवाथी संसारी जीव बताव्यो. अहीं पूर्वे कहेल दधि घटिका अने कपिल दरिद्रीनो दृष्टांत कहेवो.. (उत्तराध्ययन सूत्रमा कपिलनो दृष्टांत वतावेल छे.) हवे जे अनेक
चित्तवाळो छे ते शुं करे छे, ते वतावे छे. द्रव्य केतन एटले चालणी पूरनारो अथवा समुद्र छे. अने भाषकेतन ते लोभनी है इच्छा छे. एटले पूर्वे कोइए पण भर्यु नथी, तेने पोते भरवा इच्छे छे, तेनो सार आ छे के पैसाना लोभमां शक्य अथवा
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