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छेएम कुल २८ नो बन्ध थाय छे.: आचा० (५) तेमां तीर्थंकर नामकर्म उमेरवाथी २९ । (६) हवे त्रीशनो बन्ध बतावे छे. देवगति, १ पंचेद्रियजाति १ वैकिय आहारक शनीर २ अंगोपांग २ तेजसकार्मण २ पहेलु
ॐ सूत्रम् ॥४६०॥ संस्थान १ वर्णादि चतुष्क ४ अनुपूर्वी १ अगुरुलघु १ उपघात १ पराघात १ उच्छवास १ प्रशस्तविहायो गति १ त्रस बादर पर्याप्त ॥४६॥ ६ प्रत्येक स्थिर शुभ सुभग सुस्वर आदेय यशःकीर्ति ए दशक १० तथा निर्माण १ नाम मळी फुल ३०
[७] एमां तीर्थंकर नाम मेळववाथी ३१ थाय छे. टू आ प्रमाणे एकेंद्रिय बेइंदिय त्रेयेंद्रिय नरकगति विगेरे आश्रयी अनेक भेदे बन्धना घणा प्रकारो छे. ते कर्म ग्रंथथी जाणवा.
(८) अपूर्वकरण आदि त्रण गुण स्थाने देवगनि पायोग्य बन्धना उपरमथी यश-कीर्तिज फक्त बांधे छे. तेथी एक विधबन्ध छे. त्यारपछी नामकर्मना बन्धनो अभाव छे. पू गोत्रकर्ममा सामान्यरीते उंच अथवा नीचनो एकनो बन्ध छे. उंच अने नीच बन्ने विरोधी होवाथी साथे बन्धावानो अभाव छे. कर्मोन आ प्रमाणे बन्धद्वारमा लेशथी घणा प्रकारपणुं बताव्युं.
सूत्रकार तेथी कहे छे केः-आ कर्म जीवे बांध्यां छे. ते खुलेखुल्लुं छे, कारणके, ते प्रमाणे भोगवतां दरेकने अनुभवाय छे. है मित्रमा खलु शब्द वाक्यालंकारमा छे अथवा निश्चयअर्थमा छे के, कर्म बहु प्रकारेज छे.] जो आ प्रमाणे छे, तो ते कर्मबन्धनने ल दूर करवा शुं करवू ? ते कहे छे:
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