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आचा०
॥४३७॥
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अने तेओने परभवमां नरक विगेरे दुःख भोगववानो भय बाकी रहे छे. आ प्रमाणे गायन विगेरे बन्ने लोकमां दुःख आपनारा जाणीने जे मुनि तजे, ते केवा गुणो मेळवे ते कहे छे:
सूत्रम् से आयवं नाणवं वेयवं धंमवं बंभवं पन्नाणेहिं परियाणइ लोयं, मुणिति वुच्चे, धम्मविऊ उज्जू आवद्दसोए संगमभिजाणइ (सू० १०७)
1४॥४३७॥ जे मुनि महामोहनिद्रामा सुतेला लोकोने अहितने माटे यतुं दुःख जाणे ते लोक समयदर्शी छे, ते शस्त्रयी दूर रहीने मधुर | गायन विगेरे पांच कामगुणो एकलाज दुःखना हेतुओ तरीके ज्ञ-परिज्ञावडे जाणे छे, तथा प्रत्याख्यान परिज्ञावडे त्यागे छे, ते मोक्षा| भिलापी मुनि छे, अने ते आत्माने जाणनारो छे. एटले, ज्ञानादिक गुणवाळो आत्मा तेणे मेळव्यो; ते आत्मावान छे, कारणके, है शब्दादि विषय त्यागवाथी एणे आत्मानु रक्षण कर्यु छे, जो, तेम रक्षण न कर्यु होत; तो, पोतानां पापथी नारकी, तथा एकेन्द्रिय ४॥ विगेरेमा उत्पन्न थतां आत्मानु कार्य मोक्षमा जवान न करवाथी तेनो आत्मा केवी रीते गणाय ? (आत्मानुं कार्य ज्ञानमा रमणता करी; चारित्र पाळी; मोक्षमांज जवान छे, ते जे मात करे; तेणे आत्मा मेळव्यो जाणवो; अने तेज आत्भावाळो छे.)
अने तेज ज्ञानवान् पण छे. एम जाणवू अथवा, बोजा प्रतिमा आयवी नाणवी छे, तेनो अर्थ आ छे के:
पोताना आत्माने श्वभ्र (नरक) विगेरेमां पडतां अटकावे; ते आत्मवित् (आत्माज्ञानी) छे तथा प्रभुए जेवू पदार्थनें स्वरुप : बताव्यु; तेवू जाणे, ते ज्ञानवित् (तत्त्वज्ञानी) ते, तथा जीवादि स्वरूपने जेनावडे जाणे ते वेद एटले, आचाराङ्गविगेरे मूत्र जा
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