________________
।
३९५॥
CACACCASIA
मुसो एक मुख विना रद ले. तेथी गुरु शिष्यने कहेले, संसारी कामीजीवोनो दुख जोड़ने मने सीममानता भोगोनीपो .
वली संसारी भोग वांच्छक स्वरूप कहे हे. पोते कामना स्वरूपने अयवा सेना का विषाको मजाणीने या KिU राखेलो वीजानी सुंदर खीओ जोइने ते न मळवाधी अथवा पोतानी बहाली मिया भरी जयाधी तेजी लादिमी करे हे; कहुं छे केः
"चिन्ता गते भवति साध्वसमन्तिकस्थे-मुक्ते तु तसिरधिका रमितेऽध्य पशिः ॥
द्वेषोऽन्यभाजि वश वर्तिनि दग्धमानः-प्राप्तिः सुखस्य दयिते न कश्चिदस्ति ॥९॥" नाश पामे तो चिन्ता थाय, पासे होय तो तेना धाकथी गभरामण याय, माग बारे सोनी ४५६०१ unia sigallarm, 8/ अथवा पति के पत्नी वीजा साथे संबंध करे, तो ऐप थाय, घश करतो पनि पो थाय भी करीमे all audel/ स्त्रीने कदापि पण नथी, आ प्रमाणे धन विगेरेमां पण समज के फोइपण प्रकारे काम विभावय राख मी. aur पाये छे, एवं वतावीने समाप्त करवा कहे छे..
से तं जाणह जमहं बेमि, तेइच्छं पंडिए पवयमाणे से हत्ता, हिसा मिला प३५॥ qिin इना उद्दवइत्ता, अकडं करिस्लामिति मन्नमाणे, जस्सपि य णं करे, अलंबाल संगण. जे वा से कारइ वाले, न एवं अणगारस्स जायइ (सू. ९५) निबेगि ॥