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आचा०
॥३९४॥
SAGER-61-09-ॐ
उत्तर:-आ नाशवंत शरीरनी पुष्टि माटे जीवहिंसा विगेरे पापक्रियाओ करे छे, ते क्रियामां हणायला सेंकडो प्राणीओ नाश पामे छे, तेथी मरेला जीवो साथे वेर बन्धाय छे. जे उपर कही गया के, भवभ्रमणमांकपट करवाथी वेर वधे छे, अथवा गुरु कहे छे:-आ वारंवार हुँ जे उपदेश आपुं छु, तेनुं कारण ए छे के, संसारमा वेर वधे छे, तेथी संयमनीज पुष्टि करवी ते सारुं छे.
1 सूत्रम् हवे वीजु कहे छे. जे देवता नहीं छतां, देवता माफक द्रव्य-जुवानी स्वामीपणुं, सुंदर रुप, विगेरेथी युक्त होयः ते मनुष्य अ-P॥३९॥ मर ( देवता ) माफक आचरे ते अमराय ( देवताइ) पुरुष कहेवाय; ते महाश्रद्धी एटले, जेने भोगमां, अने तेने मेळववाना उपायमा घणी लालसा (श्रद्धा) होय; ते महाश्रद्धी (पापारंभी) छे, तेनुं दृष्टांत कहे छे:-राजगृह-नगरमां मगधसेना नामनी गणिका
(वेश्या ) रहेती हती. तेज नगरमां धनशेठ नामनो सार्थवाह हतो. ते कोइ बखते घj धन आपीने, ने वेश्यानां घरमा पेठो. तेना ६ रुपयौवन-गुणोनो समूह, द्रव्य विगेरेनी लालचथी वेश्याए तेने स्वीकार्यो; पण ते शेठनु आवक, खर्चना हीसावनी जंजाळमां मन
रोकायाथी ते वखते, वेश्याने नजरे पण जोइ शक्यो नहीं. (मतलब के, वेपारनी धुनमां, वेश्या साथे वात पण करी नहीं.) आ । वेश्या पोताना रुपयौवन-सुंदरताना अहंकारथी दुःखी थइ. तेने अति दुःखी जोइने जरासंघ राजांए कहेवडाव्युं के तारुं दुःख, का
रण शुं छे? अथवा तुं कोनी साथे रहे छे ! वेश्याए कह्यु के हुं अमर साथे रहुं छ राजाए पूछ्यु के केवी रीते ? तेने कयु के मने ले राखनार शेठ आ प्रमणो पैसादार छे, अने भोगना अभिलापीओ धनमां असक्त बनेला देवता माफक क्रियामां वर्ते छे, खावा पी
वामां तथा बीजी क्रियामां देवता माफक विलास भोगवे छे, पण कामनो अभिलापि शरीर अने मननी पीडामा पीडाएलो बहारथी ५ सुखी अने अंदरथी दुःखी भोगोनी इच्छावालो छतां भविष्यना वेपारनी चिंतामां पडेलो मने जोतो पण नथी, तेथी मारां वांए