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सूत्रम
॥३८९॥
| विदर्शी ते काम मेळवचा पैसो पेदा करवा एक ध्यान राखनारा पुन्य पापने भूली गएला अन्य लोकोने पोते जुए छे. ते वतावे छे.
जे काम विगेरेमा अथवा तेने प्राप्त करवाना उपायमा लागेला छे. तेने वारंवार आचरवाथी बन्धाता तथा अशुभ कर्म बढे संसार ठ
चक्रमा भमता जोइने पोते विशाळ चक्षुवाळा कामना अभिलाषथी दूर थवा केम समर्थ न थाय ? ( अर्थात् डायो माणस दुःख वि-H ॥३८९॥ चारी पापथी दूर भागे.)
गुरु शिष्यने कहे छे-हे शिष्य ! संसारना भोगोमां राचता अने तेथी दुःखी थता जीवोने तुं जो, वळी आ मनुष्य लोकमां | जे ज्ञानादिक भाव संधि छे. ते मनुष्य लोकमांज संपूर्ण प्राप्त थाय छे, (केवळ ज्ञान यथाख्यात चारित्र जे मोक्षना हेतुओ छे, ते | 8 मणष्यनेज छे. माटे मर्त्य लोकने लोधो छे,) अने जे डाह्यो छे ते पोते उपर बतावेल तत्वने समजीने विषय कपाय विगेरेने छोडे छे,
तेज वीर पुरुष छे. ते सूत्रकार बतावे छे एटले जे आयत चक्षुवालो छे. तथा लोकना विभागना स्वभावने यथावस्थित पणे जाणे छे. ते भाव संधिनो जाण छे, अने विषय तृष्णाने छोडनारो छे. ते वीर पुरुष कर्मने विदारण करवाथी वखणायो छे, अर्थात् तत्व जाणनारा पुरुषोए तेनी प्रशंसा करी छे. . ते आ प्रमाणे तखज्ञानी बनीने वीजें | करे छे ते कहे छे
"जे बद्ध एटले द्रव्य भाव बंधन बढे बंधाएला छे. तेमने पोते मुक्त बनी वीजाने मुकावनार छे, तेज द्रव्य भावबंधनो विमोक्षक (मुक्ति भपावनार) छे. ते वाचानी युक्ति वडे बतावे छे. जेवीरीते पोते अभ्यंतरथी मुकाएलो छे, तेवीरीते बहारथी पण मुक्त छे, एटले अंदर आठ प्रकारनी कर्मनी बेटी छे, ते छोडावे छे. तथा पुत्र, स्त्री, विगेरेने पण छोडावे छे. एटले जेम आठ प्र