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सूत्रम् | ॥३६७॥
जल्दी नाश पामे तेवी वस्तुओने राखी मुके छे, दहीं भात मेळवी राखे छे, तथा घणो काळ रही शके तेवी वस्तुओनो संचय चाला
पण करे छे, ते बाल हरडे, साकर द्राक्ष, बिगेरेने संघरे छे, आ वधु परिग्रह विगेरे आजीविकाना कारणे छे, अथवा धनधान्य सोनुं
विगेरेनो संग्रह करे छे. आ नधुं शा माटे करे छे ते कहे छे:६७॥ आ लोकमां परमार्थ बुद्धिवाळा मुनिओने जमाडवा माटे करे छे, एटले कोइ स्वार्थ माटे, तथा कोइ परमार्थ माटे रात्रिमां, प्र-
भातमां के दिवसमां भोजन माटे के निर्वाह माटे संसारी-पापक्रियाओ करे छे, अने विरूप शस्त्रोवडे बीजां जीवोने पीडा करे छे. आ प्रमाणे लोकनी स्थिति होय; तो, साधुए शुं करवू ते कई छे:
समुट्टिए अणगारे आरिए आरियपन्ने आरियदंसी अयंसंधित्ति अदक्खु, सेनाईए ना
इयावए न समणुजाणइ, सवामगंधं परिन्नाय निरामगंधो परिवए (सू० ८७) जे साधु सम्यक् रीते निरंतर संयम अनुष्ठानवडे वर्ने छे, ते जुदां जुदां शस्त्रोवढे थती पापक्रियाथी मुक्त थयलो छे, ते मुनिने घर नथी; तेम ममत्त्व पण नथी; 'तेथी ते अनगार छे, तेम तेने गृहस्थनी माफक दीकरा-दीकरी बहु विगेरेने पण पोषवां नथी. ते अनगार पोते बधां पापकर्मोथी दर थयेल छे, तेथी ते आर्य छे, तेथी ते चारित्रने पाळवा योग्य छे. वळी जेनी बुद्धि उत्तम छे, ते आर्य प्रज्ञावाळो जाणवो एटले सूत्र भण्याथी; जेनी बुद्धि परमार्थमां खीलेली छे, तथा न्यायमा मन रहेलं होवाथी ते न्यायने जुए तेथी ते आर्थदर्शी छे, एटले ते जुदा “प्रहेणक ' श्यामा' अशन" (पूर्वे परोणा विगेरे माटे राते रांध; विगेरे तेनाथी मुक्त)
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